सोमवार, 27 नवंबर 2023

 गुप्तजी की राष्ट्रीय भावना। 

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के कवि हैं अतः उनके काव्य में द्विवेदीयुगीन समाज सुधार की भावना, राष्ट्रीयता, जन-जागरण की प्रवृत्ति एवं युगबोध विद्यमान है। उनकी कृति 'भारत-भारती' में भारत के अतीत गौरव के साथ-साथ वर्तमान दुर्दशा की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है और परतन्त्रता की बेड़ियां तोड़ने का आह्वान है। इन्हीं कारणों से इस कृति को तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया था। इसके अतिरिक्त उनके अन्य काव्य-ग्रन्थों में भी राष्ट्र-प्रेम, देश-सेवा, त्याग और बलिदान की प्रेरणा दी गई है। 'स्वदेश संगीत' में उन्होंने परतन्त्रता की घोर निन्दा करते हुए भारत की सुप्त चेतना को जगाने का प्रयास किया तो 'अनघ' में सत्याग्रह की प्रेरणा देते हुए राष्ट्र-सेवा, राष्ट्र-रक्षा, आत्मोत्सर्ग की भावनाओं का निरूपण किया। 'वकसंहार' में उन्होंने अन्याय दमन की प्रेरणा दी और 'साकेत' में स्वावलम्बन का पाठ पढ़ाया। 'यशोधरा' और 'द्वापर' में उन्होंने नारी भावना की अभिव्यक्ति की तथा राष्ट्र और समाज को उसके कर्तव्य का बोध कराया। इस प्रकार गुप्तजी ने सच्चे अर्थों में अपनी रचनाओं से राष्ट्र-प्रेम जाग्रत किया और समाज-सुधार की प्रेरणा दी। गुप्तजी की मान्यता थी कि कला का उद्देश्य मात्र मनोरंजन करना नहीं है अपितु वह लोककल्याण की विधायक भी होनी चाहिए।

"केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए, 

समें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।।

बाबू गुलाबराय जी का मत है कि "गुप्तजी की कविता में राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता है।" उनकी रचनाओं में सत्याग्रह, मानवतावाद, अहिंसा, विश्व-प्रेम और श्रमजीवियों के प्रति सम्मान भाव मिलता है। अपने युग को नवीन स्फूर्ति प्रदान करते हुए गुप्तजी ने जनता को जाग्रत करने में अपनी भूमिका का सफल निर्वाह किया है।


मैथिलीशरण गुप्त ने अपने काव्य-संकलन 'वैतालिक' के जागरण गीतों से भारतवासियों में स्वाभिमान जगाने के प्रयास किया, 'किसान' नामक काव्य में किसानों की दयनीय दशा पर क्षोभ व्यक्त किया और उसके शोषण को तत्काल समाप्त किए जाने पर जोर दिया। गुप्तजी द्वारा 'गुरुकुल' काव्य में सिक्खों के बलिदानपूर्ण आख्यानों द्वारा देशवासियों में राष्ट्रीयता जगाने का प्रयास किया। 'अर्जन और विसर्जन' की रचना करके उन्होंने देशवासियों को शिक्षा दी कि स्वतन्त्रता के लिए बलिदान एवं त्याग करने के लिए तत्पर रहना चाहिए।


'विश्व-वेदना' नामक काव्यग्रन्थ में उन्होंने युद्ध की विभीषिका से राष्ट्र को परिचित कराया एवं अधिक कर लगाने की नीति का घोर विरोध किया। 'अंजलि और अर्घ्य' नामक काव्यग्रन्थ उन्होंने पूज्य महात्मा गांधी के निधन पर लिखा जिसमें कवि ने गांधीजी के विशिष्ट गुणों, विविध उपकारों एवं कार्यों से जन-जन को परिचित कराया। 'जयभारत' महाभारत के कथानक पर आधारित भारत के अतीत गौरव का गान है। 'राजा-प्रजा' नामक काव्यग्रन्थ में उन्होंने शासक एवं प्रजा के कर्तव्यों का उल्लेख किया है।

डॉ. सत्येन्द्र ने उनके विषय में लिखा है "राष्ट्रीयता गुप्तजी का उद्देश्य है, पर संस्कृति शून्य राष्ट्रीयता उन्हें ग्राह्य नहीं है।" निःसन्देह गुप्तजी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीयता से उद्दीप्त भावों को जन-जन के हृदय में भरने का प्रयास किया और उन्हें पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त होने के लिए प्रेरणा दी। राष्ट्रीयता पोषक विचारों के कारण ही सन् 1936 ई. में महात्मा गांधी ने उन्हें काशी में 'राष्ट्रकवि' की उपाधि से विभूषित किया। उन्होंने जीवन पर्यन्त राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत काव्य की रचना करके इस उत्तरदायित्व का निर्वाह किया। डॉ. उमाकान्त ने उनके विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए ठीक ही लिखा है- "भारतीय संस्कृति के प्रवक्ता होने के साथ-साथ मैथिलीशरणजी प्रसिद्ध राष्ट्रीय कवि भी हैं। उनकी प्रायः सभी रचनाएं राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत हैं।" निश्चय ही राष्ट्रीय काव्यधारा में गुप्तजी महत्वपूर्ण स्थान के अधिकारी हैं।



शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

रिपोर्ताज : अर्थ, स्वरूप, विशेषता

 प्रश्न-1 रिपोर्ताज से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं को लिखिए । 

उत्तर- रिपोर्ताज—’रिपोर्ताज’ फ्रेंच भाषा का शब्द है तथा अंग्रेजी के ‘रिपोर्ट’ शब्द से इसका घनिष्ठ सम्बन्ध है। किसी घटना के विवरण को ‘रिपोर्ट’ कहते हैं, जो प्राय: समाचार पत्रों के लिए लिखी जाती है।

रिपोर्ताज का लेखक रिपोर्ताज में युद्ध, महामारी, अकाल, बाढ़ आदि के दुष्परिणाम का आँखों देखा समचार वर्णित करता है, पर उसका उद्देश्य सूचना देना भर नहीं होता। इसके पीछे उसकी एक विशेष दृष्टि होती है। लेखक का मुख्य उद्देश्य महामारी, बाढ़, अकाल आदि से उत्पन्न विषम स्थितियों से लाभ उठाने वाले मुनाफाखोरों पर व्यंग्य करना होता है। यूँ तो रिपोर्ताज में विनाशकारी घटना के वर्णन पर लेखक की दृष्टि टिकी होती है और पात्र उसके लिए विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं होते, तथापि मानव-मूल्यों का नाश करने वाले कुछ पात्रों के अमानवीय कार्यों का वर्णन भी लेखक ही करता है। इस प्रकार एक वाक्य में यह कहा जा सकता है कि जब कोई समाचार केवल समाचार नहीं रहता, वरन् मानवमूल्यों से जुड़कर साहित्य की स्थायी सम्पत्ति बन जाता है, तब उसे ‘रिपोर्ताज’ कहते हैं।

परिभाषाएँ—

डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “रिपोर्ट में जहाँ कलात्मक अभिव्यक्ति का अभाव होता है तथा तथ्यों का लेखा-जोखा मात्र रहता है, वहाँ रिपोर्ताज में तथ्यों को कलात्मक एवं प्रभावोत्पादक ढंग से व्यक्त किया जाता है। इस रचना-विधा का प्रादुर्भाव सन् 1936 के आस-पास द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हुआ था। रूसी साहित्यकारों ने इसका विशेष प्रचार-प्रसार किया । इलिया एटेनबुर्ग ने रिपोर्ताज-लेखन का कुशल परिचय दिया। हिन्दी में रिपोर्ताज – लेखन की परम्परा शिवदान सिंह चौहान की रचना ‘लक्ष्मीपुरा’, जो ‘रूपाभ’ पत्रिका में सन् 1938 में प्रकाशित हुई, से आरम्भ मानी जाती है । “

डॉ. तिलकराज शर्मा के अनुसार, “पत्रकारिता से सम्बन्धित नव्य विधा रिपोर्ताज को समाचार निबन्ध और कहानी की मध्यवर्ती विधा माना गया है। यह प्रायः घटना- प्रधान सर्जना है। इसमें प्रायः सत्य घटित घटनाओं को इस प्रकार के आवेश एवं शिल्प-सौन्दर्य के साथ चित्रित किया जाता है कि ये प्रत्यक्ष दर्शक सी बन जाती है। वातावरण एवं दृश्यविधान इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं। सत्य के साथ यहाँ कल्पना और भावना का भी समन्वय हो जाता है। कल्पना और भावना का प्रयोग मात्र दृश्य विधान की सजीवता और प्रभाव के लिए किया जाता है।”

डॉ. भगीरथ मिश्र के अनुसार, “किसी घटना या दृश्य का अत्यन्त विवरणपूर्ण, सूक्ष्म तथा रोचक वर्णन इसमें इस प्रकार किया जाता है कि वह हमारी आँखों के सामने प्रत्यक्ष हो जाए और हम उससे प्रभावित हो उठें।”

रिपोर्ताज की विशेषताएँ– उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर रिपोर्ताज की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं—

(i) रिपोर्ताज निबन्ध की श्रेणी में आते हैं कथा, साहित्य अथवा जीवन के क्षेत्र में नहीं ।

(ii) रिपोर्ताज का उद्देश्य सामूहिक प्रभाव उत्पन्न करना होता है।

(iii) रिपोर्ताज पढ़कर ऐसा लगना चाहिए, मानो वह घटना को प्रत्यक्ष अपनी आँखों से देख रहा है ।

(iv) रिपोर्ताज में घटना के सभी पात्रों का चित्रण होना चाहिए, तभी वह प्रभावपूर्ण सिद्ध हो सकेगा।

(v) रिपोर्ताज लिखते समय लेखक को वर्ण्य-वस्तु अथवा घटना का पूर्ण वर्णन ज्ञात होना चाहिए।

(vi) रिपोर्ताज में वर्णित घटना अथवा दृश्य काल्पनिक न होकर वास्तविक होता है।

(vii) रिपोर्ताज अत्यधिक रोचक तथा मनोरंजक एवं विवरणात्मक शैली में लिखा जाता है ।

(viii) यह किसी दृश्य अथवा चरित्र का नहीं, बल्कि किसी विषय का होता है।

रिपोर्ताज के गुण एवं प्रकार

 

<><> रिपोर्ताज के गुण एवं प्रकार का वर्णन कीजिए। <><>

रिपोर्ताज के गुण-

1. आँखों देखी, कानों सुनी घटनाएँ ही रिपोर्ताज का वर्ण्य विषय होती हैं। रिपोर्ताज लेखक के लिए घटना का प्रत्यक्षदर्शी होना आवश्यक है। तथ्यों का सजीव एवं यथार्थ वर्णन रिपोर्ताज का सर्वप्रधान गुण है।

2. घटना के यथार्थ वर्णन के साथ- साथ रिपोर्ताज को कथातत्त्व से युक्त होना चाहिए।

3. रिपोर्ताज का गुण उसकी साहित्यिकता, चित्रात्मकता अथवा कलात्मकता है।

4. रिपोर्ताज के लिए लेखक को पर्यवेक्षण क्षमता में निष्णात होना चाहिए। रिपोर्ताज लेखक को पत्रकार एवं साहित्यकार दोनों की भूमिका निभानी पड़ती है। डॉ. लक्ष्मीनारायण चातक व डॉ. हरि महर्षि ने लिखा है कि- " रिपोर्ताज लेखन के लिए एक और पत्रकार दूसरी ओर निबंधकार और तीसरी ओर कहानीकार की प्रतिभा अपेक्षित है। अनुभव की व्यापकता, जनजीवन से निकट सम्पर्क और सहज संवेदनशीलता रिपोर्ताज लेखक से अपेक्षित गुण हैं।

5. घटनाओं के सफल नियोजन और प्रभावित संपुंजन में ही रिपोर्ताज की कला सन्निहित होती है। रिपोर्ताज लेखक को बड़ी सजगता के साथ घटनाओं के नियोजन, घटनाओं के मर्म और पात्रों की मनःस्थिति इत्यादि का अंकन करना चाहिए तभी रिपोर्ताज की सफलता संभव है।

6. रिपोर्ताज के लिए आवश्यक है - लेखक की सरल, सहज विषयानुकूल एवं प्रभावशाली भाषा-शैली ।

कहा जा सकता है कि रिपोर्ताज के आवश्यक गुणों में घटना का सजीव एवं यथार्थ वर्णन, कथात्मकता, साहित्यिकता, चित्रात्मकता, कलात्मकता, विश्वसनीयता, घटनाओं का प्रत्यक्ष अनुभव और सफल नियोजन तथा सरल, सहज एवं प्रभावपूर्ण भाषा शैली इत्यादि उल्लेखनीय है।

रिपोर्ताज के प्रकार-

रिपोर्ताज के प्रमुख प्रकार निम्नांकित है

1. घटना - प्रधान रिपोर्ताज रोमांचक विभीषक घटनाओं (यथा युद्ध, अकाल, बाढ़, सूखा इत्यादि) पर लिखे गये रिपोर्ट घटना प्रधान रिपोर्ताज कहलाते हैं। जैसे रांगेय राघव का बंगाल के दुर्भिक्ष और महामारी पर तूफानों के बीच' शीर्षक से लिखित रिपोर्ताज घटना प्रधान एक प्रसिद्ध रिपोर्ताज है, इसमें आँखों-देखी घटनाओं, यथा भूख से बिलबिलाते नर-कांकालों एवं पूंजीपतियों व्यापारियों, मुनाफाखोरियों के अमानवीय मृत्यों इत्यादि का मार्मिक विवरण प्रस्तुत हुआ है। बंगाल का अकाल (प्रकाशचंद गुप्ता) ऋण-जल धन जल (फणीश्वर नाथ रेण) इत्यादि रिपोर्ताज हिंदी के श्रेष्ठ घटना प्रधान रिपोर्ताज हैं।

2. सामाजिक रिपोर्ताज सामाजिक रिपोर्ताज का ताना-बाना सामाजिक जीवन संघर्ष, सामाजिक चेतना, सामाजिक यथार्थ, सामाजिक बोध, सामाजिक जीवन के दुःख-दर्द इत्यादि पर आधारित होता है। मुन्नी की पढ़ाई, भिखारी का आगमन (रांगेय राघव), इतिहास के पन्नों पर खून के धब्बे (भगवतशरण उपाध्याय), गरीब और अमीर (रामनारायण उपाध्याय), जुलूस रूका है (विवेकी राय इत्यादि रचनाएँ हिंदी के प्रसिद्ध सामाजिक रिपोर्ताज हैं।

3. सांस्कृतिक रिपोर्ताज सांस्कृतिक रिपोर्ताज का वर्ण्य विषय मेले, उत्सव, समारोह, अभिनंदन इत्यादि पर आधारित होते हैं। जैसे- कन्हैयालाल मिश्र (स्वतंत्रता पूर्व कांग्रेस के अधिवेशन), माखनलाल चतुर्वेदी का अभिनंदन समारोह, 15 अगस्त 1951 को आयोजित स्वतंत्रता-समारोह इत्यादि हिंदी के प्रसिद्ध सांस्कृतिक रिपोर्ताज के हस्ताक्षर हैं।

सोमवार, 13 नवंबर 2023

रिपोर्ताज के तत्व, रिपोर्ट और रिपोर्ताजमें अंतर

 प्रश्न-4 रिपोर्ताज के कुल कितने तत्व हैं?

उत्तर- रिपोर्ताज में बहुमुखी कथ्य, चरित्र, संवाद, रचना की प्रामाणिकता, विश्वसनीयता, संवेदनशीलता, कथात्मकता, शब्द सीमा की स्वतंत्रता, भाषा और शैली, (शैली कहीं वर्णनात्मक तो कहीं विवरणात्मक) रहती है।

प्रश्न-5 रिपोर्ताज से क्या आशय है? रिपोर्ताज विधा के किन्हीं दो लेखकों एवं उनकी एक एक रचनाओं के नाम बताइए?

उत्तर- रिपोर्ताज साहित्य विधा के दो लेखकों के नाम 'रांगेय राघव' और 'कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर' हैं। रिपोर्ताज साहित्य साहित्य के गद्य लेखन की एक ऐसी विधा है, जिसमें किसी वास्तविकता से संबंध रखने वाली घटना का वर्णन किया जाता है। रिपोतार्ज फ्रांसीसी शब्द है, जो फ्रांसीसी भाषा से लिया गया है।

प्रश्न-6 वीडियो रिपोर्ताज क्या है?

उत्तर- वीडियो रिपोर्ताज तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी कार्रवाई के स्थान पर होता है और जो कुछ हो रहा है उसे वीडियो में कैद कर लेता है और उसे अन्य लोगों के सामने वापस लाता है। जो व्यक्ति रिपोर्ताज बनाता है वह "दीवार पर उड़ने वाले व्यक्ति" की तरह होता है और घटनाओं को सामने आते समय देखता है और अपने अनुभव दूसरों को बताता है।

प्रश्न-7 रिपोर्ट और रिपोर्ताज में क्या अंतर है?

रिपोर्ट- रिपोर्ताज में अंतर-

1. रिपोर्ट का संबंध पत्रकारिता - जगत् से है जबकि रिपोर्ताज एक साहित्यिक विधा है।

2. रिपोर्ट में तथ्यों का लेखा-जोखा मात्र होता है, उसमें कलात्मक अभिव्यक्ति एवं साहित्यिकता का अभाव होता है, जबकि रिपोतार्ज तथ्यों को साहित्यिक, कलात्मक एवं प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत करता है।



रिपोर्ताज : परिभाषा, अर्थ

 

प्रश्न-1 रिपोर्ताज का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- जीवन की सूचनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए रिपोर्ताज का जन्म हुआ। रिपोर्ताज पत्रकारिता के क्षेत्र की विधा है। इस शब्द का उद्भव फ्रांसीसी भाषा से माना जाता है। इस विधा को हम गद्य विधाओं में सबसे नया कह सकते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यूरोप के रचनाकारों ने युद्ध के मोर्चे से साहित्यिक रिपोर्ट तैयार की। इन रिपोर्टों को ही बाद में रिपोर्ताज कहा गया। वस्तुतः यथार्थ घटनाओं को संवेदनशील साहित्यिक शैली में प्रस्तुत कर देने को ही रिपोर्ताज कहा जाता है।

प्रश्न-2 रिपोर्ताज के संबंध में किन्हीं दो विद्वानों की परिभाषा लिखिए।

उत्तर- डॉ. भगीरथ मिश्र ने रिपोर्ताज को परिभाषित करते हु लिखा है- "किसी घटना या दश्य का अत्यंत विवरणपूर्ण सूक्ष्म, रोचक वर्णन इसमें इस प्रकार किया जाता है कि वह हमारी आंखों के सामने प्रत्यक्ष हो जाए और हम उससे प्रभावित हो उठें।"

शिवदान सिंह चौहान के अनुसार- "आधुनिक जीवन की द्रुतगामी वास्तविकता में हस्तक्षेप करने के लिए मनुष्य को नई साहित्यिक रूप विधा को जनम देना पड़ा। रिपोर्ताज उन सबसे प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण विधा है।"

प्रश्न-3 हिन्दी का प्रथम रिपोर्ताज किसे माना जाता है?

उत्तर- माना जाता है कि हिन्दी का पहला रिपोर्ताज शिवदान सिंह चौहान ने 'लक्ष्मीपुर' नाम से लिखा था

 रिपोर्ताज के विषय में कुछ स्मरणीय बिन्दु-

  • Ø  रिपोर्ताज का उदय, द्वितीय महायुद्ध के समय युद्ध की घटनाओं के रिपोर्ट या विवरण प्रस्तुति के अंतर्गत एक साहित्यिक विधा के रूप में हुआ था।
  • Ø  रिपोर्ताज, समाचार पत्रों की देन है।
  • Ø  रिपोर्ताज, गद्य विधाओं में सबसे नया कह सकते हैं।
  • Ø  हिन्दी में रिपोर्ताज लेखन की परम्परा 1940 के आस-पास शुरू हुई।
  • Ø  माना जाता है कि हिन्दी का पहला रिपोर्ताज शिवदान सिंह चौहान ने 'लक्ष्मीपुर' नाम से लिखा था।
  • Ø  रिपोर्ताज साहित्य विधा के दो लेखकों के नाम 'रांगेय राघव' और 'कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर' हैं।