रविवार, 15 जनवरी 2023

बिहारी के दोहे

 

बिहारी के दोहे

1.तंत्री-नाद कबित्त-रस सरस राग रति-रंग।
अनबूड़े बूड़े तरे जे बूड़े सब अंग॥

2.या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोइ।
ज्यौं-ज्यौं बूड़ै स्याम रँग त्यौं-त्यौं उज्जल होइ॥

3.स्वारथु सुकृत न स्रमु बृथा देखि बिहंग बिचारि।
बाज पराऐं पानि परि तूँ पच्छीनु न मारि॥

4. जोरी जुरे क्यों न सनेह गँभीर।
को घटि ए बृषभानुजा वे हलधर के बीर॥

कबीर के दोहे

 

कबीर के दोहे

1.राम नाम कै पटंतरे, देबे कौं कुछ नाहिं।
क्या लै गुरु संतोषिए, हौंस रही मन माँहि॥

2.हंसि हंसि कंत न पाइए जिनि पाया तिनि रोइ।
जो हाँसेही हरि मिलै तो नहीं दुहागनि कोइ॥

3. कायर बहुत पमांवहीं, बहकि न बोलै सूर।

काम पड्यां हीं जाणिये, किस मुख परि है नूर!!

 

4.भक्ति दुहेली राम की , नही कायर का काम।

शीश उतारे हाथ लै, सो लेही हरी नाम।।

तुलसी के पद

 

तुलसी के पद

1. ऐसी मूढता या मन की।
परिहरि रामभगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की।
धूम समूह निरखि-चातक ज्यौं, तृषित जानि मति धन की।
नहिं तहं सीतलता न बारि, पुनि हानि होति लोचन की।
ज्यौं गज काँच बिलोकि सेन जड़ छांह आपने तन की।
टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आनन की।
कहं लौ कहौ कुचाल कृपानिधि, जानत हों गति मन की।
तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निज पन की।

2. कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो।

श्रीरघुनाथ-कृपाल-कृपातें संत-सुभाव गहौंगो॥

जथालालभसंतोष सदा, काहू सों कछु न चहौंगो।

पर-हित-निरत निरंतर, मन, क्रम बचन नेम निबहौंगो॥

परुष वचन अति दुसह श्रवन सुनि तेहि पावक न दहौंगो।

बिगत मान, सम सीतल मन, पर-गुन नहिं दोष कहौंगो॥

परिहरि देह-जनित चिंता, दुख-सुख समबुद्धि सहौँगो।

तुलसीदास प्रभु यहि पथ रहि अबिचल हरि-भगति लहौंगो॥

मानसरोदक खंड – पदमावत

 मानसरोदक खंड – पदमावत

एक दिवस पून्यो तिथि आई । मानसरोदक चली नहाई ॥
पदमावति सब सखी बुलाई । जनु फुलवारि सबै चलि आई ॥
कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली । कोइ सु केत, करना, रस बेली ॥
कोइ सु गुलाल सुदरसन राती । कोइ सो बकावरि-बकुचन भाँती ॥
कोइ सो मौलसिरि, पुहपावती । कोइ जाही जूही सेवती ॥
कोई सोनजरद कोइ केसर । कोइ सिंगार-हार नागेसर ॥
कोइ कूजा सदबर्ग चमेली । कोई कदम सुरस रस-बेली ॥

चलीं सबै मालति सँग फूलीं कवँल कुमोद ।
बेधि रहे गन गँधरब बास-परमदामोद ॥1

खेलत मानसरोवर गईं । जाइ पाल पर ठाढी भईं ॥
देखि सरोवर हँसै कुलेली । पदमावति सौं कहहिं सहेली
ए रानी ! मन देखु बिचारी । एहि नैहर रहना दिन चारी ॥
जौ लगि अहै पिता कर राजू । खेलि लेहु जो खेलहु आजु ॥
पुनि सासुर हम गवनब काली । कित हम, कित यह सरवर-पाली ॥
कित आवन पुनि अपने हाथा । कित मिलि कै खेलब एक साथा ॥
सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं । दारुन ससुर न निसरै देहीं ॥

पिउ पियार सिर ऊपर, पुनि सो करै दहुँ काह ।
दहुँ सुख राखै की दुख, दहुँ कस जनम निबाह ॥2

 

विद्यापति पदावली

1.   सैसव जौवन दरसन भेल। दुहु दल-बलहि दन्द-परि गेल।।
कबहुँ बाँधए कच कबहुँ बिथार। कबहुँ झाँपए अँग कबहुँ उघार।।
थीर नयान अथिर किछु भेल। उरज उदय-थल लालिम देल।।
चपल चरन, चित चंचल भान। जागल मनसिज मुदित नयान।।
विद्यापति कह करु अवधान। बाला अंग लागल पंचवान।।


अविरल नयन गरए जलधार । नव जल विन्दु सहए के पार ॥

कि कहय साजनि ताहेरि कहिनी । कहहि न पारिय देखलि जहिनी ॥

कुच युग ऊपर आनन हेरे । चान्द राहु डरे चढ़ल सुमेरु ॥

अनिल अनल वम मलयजबीख। जेओ छल शीतल सेय्रो भेल तीख ॥

चान्द सतावए सबिताहु जीनि । नहि जीवन एकमतभेलि तीनि ॥

किछु उपचार मान नहि आन । ताहि बेग्राधि भेषज पश्चवान ॥

तुभ दरसन विनु तिलाओ न जीव । जइअगो कलामति पीउख पीब ॥