रविवार, 15 जनवरी 2023

मानसरोदक खंड – पदमावत

 मानसरोदक खंड – पदमावत

एक दिवस पून्यो तिथि आई । मानसरोदक चली नहाई ॥
पदमावति सब सखी बुलाई । जनु फुलवारि सबै चलि आई ॥
कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली । कोइ सु केत, करना, रस बेली ॥
कोइ सु गुलाल सुदरसन राती । कोइ सो बकावरि-बकुचन भाँती ॥
कोइ सो मौलसिरि, पुहपावती । कोइ जाही जूही सेवती ॥
कोई सोनजरद कोइ केसर । कोइ सिंगार-हार नागेसर ॥
कोइ कूजा सदबर्ग चमेली । कोई कदम सुरस रस-बेली ॥

चलीं सबै मालति सँग फूलीं कवँल कुमोद ।
बेधि रहे गन गँधरब बास-परमदामोद ॥1

खेलत मानसरोवर गईं । जाइ पाल पर ठाढी भईं ॥
देखि सरोवर हँसै कुलेली । पदमावति सौं कहहिं सहेली
ए रानी ! मन देखु बिचारी । एहि नैहर रहना दिन चारी ॥
जौ लगि अहै पिता कर राजू । खेलि लेहु जो खेलहु आजु ॥
पुनि सासुर हम गवनब काली । कित हम, कित यह सरवर-पाली ॥
कित आवन पुनि अपने हाथा । कित मिलि कै खेलब एक साथा ॥
सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं । दारुन ससुर न निसरै देहीं ॥

पिउ पियार सिर ऊपर, पुनि सो करै दहुँ काह ।
दहुँ सुख राखै की दुख, दहुँ कस जनम निबाह ॥2

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