रविवार, 28 जुलाई 2024

देव- कवित्त

 देव - कवित्त 


1. आपुस मैं रस मैं रहसैं, 

बहसैं बनि राधिका कुंजबिहारी।  

स्यामा सराहति त्याग पागहि, 

स्याम सराहत स्यामा की सारी।  

एकहि आरसी देखि कहै तिय,  

नी लगौ पिय प्यौ कहै प्यारी। 

'देवजू' बालम बाल को बाद, 

बिलोकि भाई बलि हौं बलिहारी।।  


2. बरूनी बघंबर और गूदरी पलक दोऊ, 

कोए राते बसन भगोहैं भेस रखियाँ। 

बूड़ी जल ही में दिन जामिनी हू जागी भौंहें, 

सिर छायो बिरहानल बिलखियाँ। 

अँसुआ फटिक माल लाल डोरी सेली पैन्हि, 

भई हैं अकेली तजि सेली संग सखियाँ। 

दीजिये दरस देव कीजिये संजोगिनी ये, 

जोगिनि है बैठी वा वियोगिनी की अँखियाँ॥ 


3. कथा मैं न कंथा मैं न तीरथ के पंथा मैं न, 

पोथी मैं न, पाथ मैं न साथ की बसीति मैं। 

जटा मैं न, मुंडन न तिलक त्रिपुंडन न, 

नदी-कूप-कुंडन न न्हान दान-रीति मैं॥ 

पीठ-मठ-मंडल न, कुंडल कमंडल मैं, 

माला-दंड मैं न ‘देव’ देहरे की भीति मैं। 

आपु ही अपार पारावार प्रभु पूरि रह्यो, 

पेखिके प्रगट परमेसुर प्रतीति मैं॥ 


4. डार द्रुम पलना, बिछौना नव-पल्लव के, 

सुमन झगूला सोहै, तन छबि भारी दै। 

पवन झुलावै, केकी-कीर बतरावै देव, 

कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी ते॥ 

पूरित पराग सों उतारों करै राई-नोन, 

कंज-कली नायिका, लतानि पुचकारी दै। 

मदन-महीप जू को बालक बसंत, ताहि, 

प्रातहिं जगावत गुलाब चटकारी दै॥ 

                                                           



मन्नू भण्डारी – त्रिशंकु

  मन्नू भण्डारी – त्रिशंकु   “घर की चारदीवारी आदमी को सुरक्षा देती है पर साथ ही उसे एक सीमा में बाँधती भी है। स्कूल-कॉलेज जहाँ व्यक्ति क...