वापसी कहानी के आधार पर गजाधर बाबू का चरित्र चित्रण कीजिये ।
उत्तर- वापसी उषा प्रियंवदा द्वारा लिखी गयी एक महत्वपूर्ण कहानी
है । गजाधर बाबू इस कहानी के सबसे प्रमुख पात्र है वे इस कहानी के वह केंद्रीय
बिंदु है जिसकी परिधि में यह पूरी कहानी घूमती है । उनका कर्तब्य परायण ब्यक्तित्व
पाठक को अपनीं ओर सहज ही आकर्षित कर लेता है । कहानी का कारुणिक अंत जिसमे गजाधर बाबू
को अपने घर से जिस घर को उन्होंने अपने त्याग और समर्पण से सजोया था, छोर कर जाना पड़ता है।
रेलवे की नॉकरी से सेवनिर्वित होकर अपने घर जाने और अपने ही घर मे उपेक्षा का
शिकार होकर उसे भी छोर कर दूसरी नॉकरी में जाने तक उनके चरित्र की अनेक विशेषताए उभर
कर सामने आती है जो निम्नलिखित है---------
1.कर्तब्यनिष्ट –
गजधारबाबू
कर्तब्यनिष्ट ब्यक्ति है । उन्होंने अपने जीवन के सभी कर्तब्यों का निर्वाह किया
है, उन्होंने 35 वर्ष
नॉकरी की, बच्चो की अच्छी शिक्षा के लिए उन्हें अपने से दूर
शहर में रखकर पढ़ाया । एक बेटे और बेटी की शादी की । शहर मे मकान बनवाया । उन्होंने
कभी भी अपने कर्तब्यों से मुह नही मोरा । अपने जीवन के सभी कर्तब्यों का भली-भांति निर्वाह उन्होंने किया है।
2. स्नेही
ब्यक्तित्व – गजधारबाबू का ब्यक्तित्व बेहद स्नेही था। उनके ब्यक्तित्व
का उल्लेख लेखिका ने भी इस कहानी में किया है “गजाधर बाबू स्वभाव से बहुत सही
ब्यक्ति थे और स्नेह के आकांक्षी भी ।“ अपने परिवार की सुविधा और बच्चो की
पढ़ाई के लिये जब उन्हें अकेला रहना पढ़ा तो उन्हें पत्नी और बच्चो के स्नेह पूर्ण
बाते याद आती रहती जब वे सेवनिव्रित होकर घर जाने वाले थे टैब उन्हें लगता फिर से
स्नेह के मध्य रहने जा रहे है।
3. सह्रदय- गजाधर बाबू सह्रदय ब्यक्ति थे ।
अपने परिवार के साथ-साथ अपने नोकर गणेश के लिये उनके हृदय में विशाल प्रेम है। वे उसे अपने परिवार
के सदस्य से कम नही मानते – “ कभी कुछ जरूरत हो तो लिखना
गणेश इस अगहन तक बिटिया की शादी कर दो।“ उनका बिशाल हृदय
सबकी खुशहाली की कामना करता रहता है।
4. त्याग की भावना -
त्याग की भावना गजाधर बाबू के चरित्र
के एक बहुत बड़ी विशेषता है उन्होंने अपने जीवन मे बिशाल त्याग किया था । पत्नी और
बच्चो को अपनो से दूर रख कर ओर वह भी सिर्फ उनके अच्छे परिवेश के लिये। यह एक बहुत
ही बिशाल निर्णय था उनके जीवन का जो कि आपने त्याग की भावना से उन्होंने पूरा
किया।
5. अकेलापन- सभी तरफ से सम्पन्न गजाधर बाबू
अपने जीवन मे नितांत अकेले है अपने परिवार से दूर गांव के एक छोटे से स्टेशन में
नॉकरी करते हुए अकेले जीवन यापन करते है लेखिका कहानी में लिखती भी है – “ इन वर्षों
में अधिकांश समय उन्होंने अकेले रहकर काटा था।“
6. उपेक्षित – गजाधर बाबू के जीवन
के अंतिम समय मे इतने प्यार और समर्पण के बाद भी बेहद ही उपेक्षित अनुभव करते है उनके
पत्नी बच्चे सब उनके साथ परायो जैसा ब्यवहार करते है। इतने सालों बाद अपने घर वापस
आने पर उन्होंने जो सपना देखा था सब टूट जाता है। बच्चो को उनकी किसी भी बात पर
टोकना अच्छा नही लगता । उनका बेटा अमर तो यहां तक कह देता है – “ बुड्ढे आदमी हो । … चुपचाप पढ़े रहो हर चीज़ में दखल
क्यों देते हो।“ अपनो द्वारा उपेक्षित ओर तिरस्कृत गजाधर
बाबू अपने को नितांत ही उपेक्षित अनुभव करने लगता है इसलिए अपना घर छोर कर फिर से
दूसरी नॉकरी करने चले जाते है।
निष्कर्ष रूप मे कह सकते है कि गजाधर बाबू इस कहानी के प्रमुख
पात्र है, जिनके चरित्र में
त्याग और समर्पण जैसे गुण है लेकिन पीढियो के बड़े अंतर ने उन्हें जीवन के अंतिम
क्षणों में भी अकेल रहने पर उपेक्षित महसूस करा दिया। बदलते हुए सामाजिक परिवेश
में गजाधर बाबू का चरित्र एक आदर्श चरित्र है किंतु इसी जमाने मे प्रत्येक गजाधर
बाबू कही न कही यही कहानी है।
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