शनिवार, 5 जुलाई 2025

घुमक्कड़ शास्त्र निबंध की समीक्षा

 राहुल सांकृत्यायन की ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ यात्रा और भ्रमण के महत्व पर आधारित विचारोत्तेजक निबंध है। इसमें उन्होंने घुमक्कड़ी को संसार की सर्वोत्तम वस्तु बताते हुए कहा है कि “दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है घुमक्कड़ी, घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता”। लेख का मूल दृष्टांत यह है कि घुमक्कड़ ही मानवता को नई-नई खोज, ज्ञान और सभ्यता प्रदान करते हैं। लेखक अपनी व्यक्तिगत अनुभवों का निचोड़ प्रस्तुत करते हुए पाठक को निर्बाध रूप से पृथ्वी का कोना-कोना घुमकर समाज-उन्नति में योगदान देने का आह्वान करता है। संक्षेप में, यह रचना यात्रा को आत्म-विकास और सामाजिक प्रगति का अत्यंत प्रभावी मार्ग दर्शाती है।

लेखक की दृष्टि और उद्देश्य

राहुल सांकृत्यायन की दृष्टि में घुमक्कड़ी केवल जीवनशैली नहीं, बल्कि समग्र मानवता के विकास का आधार है। उन्होंने इस रचना को “यात्रा की परिवर्तनकारी शक्ति का भावुक घोषणापत्र” कहा है तथा बताया है कि यह पाठक में घुमक्कड़ होने की भावना जागृत करती है, उन्हें दुनिया की यात्रा के लिए प्रेरित करती है। अपने विवेचन में लेखक यात्राओं को आध्यात्मिक खोज बताकर समझता है कि भ्रमण केवल शगल नहीं, आत्म-खोज और ज्ञानोदय का मार्ग है। इसके साथ ही उन्होंने व्यावहारिक युक्तियाँ साझा करते हुए विशेष रूप से स्त्रियों को भी भ्रमण के लिए प्रेरित किया है। कुल मिलाकर, राहुल का उद्देश्य पाठकों को निर्भय होकर अनजान भूमि पर चलने, सीमाओं को तोड़ने और अपनी क्षमताओं का विस्तार करने की प्रेरणा देना है।

भाषा-शैली और संरचना

‘घुमक्कड़ शास्त्र’ की भाषा प्रभावशाली, सुव्यवस्थित और प्रबुद्ध है। राहुल सांकृत्यायन ने ग्रंथ की शुरुआत पारंपरिक शैली में की है, जैसे ही वे लिखते हैं: *“संस्कृत से ग्रंथ को शुरू करने के लिए पाठकों को रोष नहीं होना चाहिए… छ शास्त्रों के रचयिता छ आस्तिक ऋषियों में भी आधों ने ब्रह्म को धत्ता बता दिया है। मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है घुमक्कड़ी…”*। इस प्रकार वे शास्त्रीय संदर्भों का प्रयोग कर आधुनिक यात्रा दर्शन प्रस्तुत करते हैं। लेख का ढांचा बहु-अध्यायी है, जिसमें विभिन्न उपशीर्षकों (जैसे ‘विद्या और वय’, ‘स्वावलंबन’, ‘स्त्री घुमक्कड़’, ‘देश-ज्ञान’ इत्यादि) के अंतर्गत यात्रा के विविध पहलुओं की चर्चा की गई है। प्रत्येक खंड में लेखक व्यक्तिगत अनुभव, सामाजिक दृष्टांत और ऐतिहासिक उदाहरणों का समावेश करता है, जिससे प्रस्तुति रोचक और प्रेरणादायक बनती है। इस शैलीगत रूपांकन से पाठक के सामने विचार स्पष्टता और तर्कशीलता के साथ प्रस्तुत होते हैं।

समाज और मानव जीवन पर प्रभाव

‘घुमक्कड़ शास्त्र’ ने समाज में गतिशीलता और विश्वदृष्टि का संदेश दिया है। राहुल सांकृत्यायन ने यह दिखाया कि इतिहास में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन घुमक्कड़ यात्रियों के माध्यम से हुए हैं – उदाहरणस्वरूप कोलंबस और वास्को-दा-गामा जैसे घुमक्कड़ों ने नई दिशाएँ खोलीं, डार्विन जैसी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ भी घुमक्कड़ जीवन-दर्शन से प्रेरित थीं। उनके कथनानुसार, *“यदि डार्विन ने घुमक्कड़ी का व्रत नहीं लिया होता तो वह अपने महान आविष्कार कर सकता था?”*। इस प्रकार उन्होंने भ्रमण को बुद्धि-विकास और ज्ञानवर्धन से जोड़ा है। साथ ही रचना में समदर्शिता (समान दृष्टि) का भी जोर है – राहुल कहते हैं *“समदर्शिता घुमक्कड़ का एकमात्र दृष्टिकोण है और आत्मीयता उसका सार”*, जो सामाजिक सहिष्णुता और परस्पर समझ के लिए महत्वपूर्ण है। उनकी लेखनशैली ही समाज में प्रगतिशील परिवर्तन लाने की प्रेरणा देती है; मान्यता यह है कि उनकी रचनाएँ रूढ़िवादी धारणाओं को चुनौती देकर समाज को गतिशील बनाने का मार्ग दिखाती हैं। इस तरह ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ ने यात्राओं को मनुष्य की उन्नति का साधन मानकर मानव जीवन को व्यापक दृष्टि देने में योगदान दिया है।

समकालीन प्रासंगिकता

आधुनिक वैश्वीकरण और सूचना-युग में भी राहुल सांकृत्यायन के विचार प्रासंगिक हैं। उनकी यात्रा-वैचारिकी और समदर्शिता का दृष्टिकोण आज के वैश्विक समाज में अधिक सार्थक है। जैसा उन्होंने कहा *“समदर्शिता घुमक्कड़ का एकमात्र दृष्टिकोण है”*, यह विचार वर्तमान में विश्व बंधुत्व (वसुधैव कुटुंबकम) जैसी अवधारणाओं से मेल खाता है। उन्होंने अनुभवात्मक शिक्षण को महत्व देते हुए बताया कि ज्ञान को “सफ़र में नाव की तरह” लिया जाना चाहिए, बोझ की तरह नहीं; आज की शिक्षा प्रणाली में यात्रा आधारित ज्ञानार्जन इसी सिद्धांत के अनुरूप माना जाता है। साथ ही उनकी स्त्री-समर्थक सोच और स्वावलंबन-संदेश (स्त्रियों को भी स्वतंत्रता से घुमक्कड़ी के लिए कहे जाना) आधुनिक लिंग समानता और आत्मनिर्भरता के संदर्भ में प्रासंगिक हैं। इस प्रकार, ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ के प्रेरक संदेश आज भी नई पीढ़ी को चुनौतीपूर्वक सोचने एवं साहसपूर्वक आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष

संक्षेप में, राहुल सांकृत्यायन की ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ एक कालजयी यात्रा-प्रेरक ग्रंथ है, जिसमें यात्रा के व्यापक दर्शनों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। यह रचना केवल यात्रियों के अनुभवों का संग्रह नहीं बल्कि दुनिया को समझने और उसे आगे बढ़ाने की चिरंतन प्रेरणा है। जैसा समीक्षकों ने लिखा है, यह पुस्तक पाठकों में घुमक्कड़ बनने की भावना जगाती है और कई यात्रियों की पीढ़ियों को आगे चलकर यात्रा के लिए प्रेरित करती रही है। फलस्वरूप, ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ न केवल अपने समय में बल्कि आज भी समृद्ध विचार और प्रेरणा देने वाली रचना है।


स्रोत: राहुल सांकृत्यायन, घुमक्कड़ शास्त्र (विमर्श, भारती साहित्य संग्रह) एवं संबंधित समीक्षाएँ.




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