गुरुवार, 16 मार्च 2023
नाट्य तत्वो के आधार पर बकरी नाटक की समीक्षा
1 . नाट्य तत्वो के आधार पर बकरी नाटक की समीक्षा कीजिये ?
उत्तर- बकरी नाटक स्वतंत्र भारत के राजनीतिक क्षेत्र के चुनावी योजनाओ छलाओ ओर हथकंडो को सामने लाती है। राजनेता अपने कुकर्मो को किस प्रकार गांधी जी के सिद्धांतों की आढ़ में छुपाते है इसका यथार्थ चित्रण इस नाटक में हुआ है।
इस नाटक में बकरी गरीब जनता का प्रतीक है । इनके नाम पर विभिन्न संस्थाएं सेवा संघ शांति प्रतिस्थानो का निर्माण किया जाता है जिसका लक्ष्य लोगो के जमीन पर अवैध कब्जा अधिक होता है । इन संस्थानों के तले राजनेता अपनी रोटी सेकते है तथा इनके माध्यम से गरीब जनता का शोषण करते है। यह नाटक जनवादी चेतना का नाटक है जो आम आदमी की ब्यथा को कहता है जिसे नाटककार ने व्यंग्य शैली में लिखा है। इस नाटक का प्रकाशन सन 1974 ईस्वी में हुआ। जिसमें तत्कालीन राजनीति की कुरूपता को स्पष्ट रूप से खोलकर हमारे सामने रख दिया है, नाटक न सिर्फ सामहिक समस्यायों को उठाता है बल्कि एक बड़े भ्रष्ट्राचार का पर्दाफाश करने और लोगो को जागरूक करने का प्रयास करता है । यह इस नाटक की विशेषता रही है। नाट्य तत्वो के आधार पर इस नाटक का मूल्यांकन निम्न बिन्दुओ में किया जा सकता है -----
मेरे YouTube से भी जुड़ें। शीघ्र ही हिन्दी साहित्य के सभी विषयों पर विडिओ बनाई जाएगी। www.youtube.com/@gobindyadav6676 इस चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें।
1 . कथानक या कथावस्तु - नाटक की कथावस्तु दो अंको में विभाजित है प्रत्येक अंक में तीन- तीन दृश्य है प्रत्येक दृश्य के बाद नाट्य गायन की योजना है जिसके माध्यम से आसन्न स्थिति का विश्लेषण किया गया है । नाटक की कथावस्तु के माध्यम से साधारण ब्यक्ति के शोषण की कथा को लक्ष्य किया गया है राजनीति मे कैसे गांधी जी के विचारो और उनके नामो का दुरुपयोग किया जा रहा है। इसका स्पस्ट चित्रण इस नाटक में हुआ है । गांववासियों की दायनिय स्थिति और उनकी मजबूरी का राजनेता किस प्रकार दुरुपयोग कर रहे हैं यह इस नाटक की केंद्रीय कथावस्तु है । कथा में तीन डाकू एक सिपाही मिलकर गांव की एक गरीब औरत की बकरी हड़प लेते है और इन्ही के माध्यम से सारी विडंबना प्रस्तुत की गई है । उनके संवाद उनकी मुद्राये उनके गीत अभिनय इस क्रूर सत्य को कहती चलती है ब्यवस्था की योजनाएं ओर उनके बीच गरीब औरत की बेबस पुकार ग्रामीणों की चिंता ब्यथा नाटकीय व्यंग्य ओर करुणा को समेटे हुए है । देश की वर्तमान स्थिति को नट इस प्रकार प्रकट करता है –
नेकी सच्चाई सरासत घर के सब कुछ ताक पर
थोरे नपटे भी यहाँ इतरा रहे है नाक पर
एक नारा ढलता है हर नई बर्बादी के बाद
आश्रम ही आश्रम खुल गए आजादी के बाद
बकरी नाटक में में बकरी संस्थान, बकरी स्मारक निधि , बकरी सेवा संघ जैसी संस्थाओ के नाम का उपयोग कर हमारे ब्यवस्था और सरकारी संस्थाएं आम आदमी के साथ किस प्रकार शोषण कर रही है इसका प्रतीकात्मक ढंग से पर्दाफास किया गया है । डाकुओं का आगे चलकर नेताओ में बदल जाना अपने आप व्यंग्य हो जाता है। नाटक में एक युवक द्वारा इस सारे भ्रस्टाचार ओर बिसंगतयो को तोड़ने और जनचेतना को जागृत करने की कोशिश करता दिखाया गया है। सर्वेश्वर की आस्था और विश्वास युवा शक्ति, युवा आक्रोश के प्रति थी । उन्होंने आम आदमी को बिना किसी सहानुभूति और भावुकता के उसके स्वाभाविक रूप में प्रस्तुत किया है यह युवक अंत मे नारे लगाकर नाटक को एक समाधान के संकेत पर पहुचाता है । युवक ग्रामीणों से कहता है – “बोलते क्यों नही ? आप इन्हें लुटेरा मानते है या नही इनके कहे में आकर आपने आपने गलती की या नही इनके लिए अपना सब कुछ गवा कर आपने पाप किया या नही ?” नाटक का अंत भविष्य की आशाओं से होता है । जिसमे युवक गरज कर कहता है “ अब यह मैं – मैं नही होगी बांधो इन लुटेरो को इंकलाब जिंदा – बाद “ आम जन को जागने के लिए और इन्हें लड़ने के लिए तैयार करता हुआ कहता है –
बहुत हो चुका अब हमारी है बारी
बदल के रहेंगे ये दुनिया तुम्हारी ।
2. पात्र योजना – पात्र योजना की दृष्टि से बकरी नाटक में मंत्री नेता पुलिस आदि सत्ताधारि सुबिधा भोगी पात्रो का चरित्र प्रस्तुत किया गया है जो सोषक का प्रतीक है विपति, युवक आदि शोषित लोगो का प्रतीक है सारे पात्र ब्यवस्था के विकृत रूप को दिखाने का प्रयत्न करते है सभी पात्र वर्गीय है । ये पात्र अपने नामो के अनुरूप सत्य अहिंसा और लोकतंत्र आदि की बड़ी बड़ी बातें करके भी ठीक इसके विपरीत आचरण करते है एक वर्ग उन पात्रो का भी है जो ब्यवस्था के प्रति आक्रोश ब्यक्त कर अपनी जनवादी चेतना का स्वरूप सामने रखता है। युवक इस जनवादी चेतना का सशक्त प्रतिनिधित्व करता है ।
3. संवाद – संवाद की दृष्टि से यह नाटक गायन के संवाद में है क्योंकि यह एक गीति नाट्य है। एक ओर जहां डाकुओ के संवाद में शोषण का चित्र है – दुर्जन कर्मवीर अब इनके पास अब कुछ नही है ।
कर्मवीर- फिर भी काफी चढ़ावा आ गया । इसके ठीक विपरीत युवक अपने संवाद से प्रगतिशील का परिचय देता है। डाकुओं के चुनाव जीतने पर ग्रामीणों से कहता है –
युकक- कहो काका जीता दिया
एक ग्रामीण – सब राम जी की माया है तुम जेहल से छूट कर आ गए बचवा ।
युवक – हाँ एक और जेहल में ,
दूसरा ग्रामीण – और को जेहल बच्चा ,
युवक- आप लोगो का अज्ञान जेहल भी है, अब ये जीत के और लूटेंगे । पहले बकरी का नाम लेकर लूटते थे अब आप का ही नाम लेकर लूटेंगे ।
4. देशकाल और वातावरण - देशकाल एवं वातावरण की दृष्टि से यह नाटक सन 1974 का है जब राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई थी । देश और समाज राजनीतिक दुश्चक्रों में फसा हुआ था । उसी राजनीतिक दुष्चक्र का चित्रण इस नाटक में हुआ है । देश मे राजनीतिक भ्रस्टाचार और डाकुओं और गुंडो का नेताओं में बदलना देश की राजनीति की एक बहुत बड़ी विसंगति थी जिसका चित्रण नाटककार ने किया है ।
5. भाषा शैली - भाषा की दृष्टि से बकरी नाटक की भाषा सरल और ब्यवहारिक जन- भाषा है। भाषा मे कोई जटिलता नही है । नाटक की भाषा मंच पर अभिनय करने में सामर्थ्य है सर्वेश्वर ने नाटक की भाषा खड़ी बोली रखी है मगर पात्र के स्तर के अनुसार ज्ञानी पात्रो की भाषा मे अवधि मिश्रित है । नाट्य भाषा मे चलते – चलते मुहावरे , लोकक्ति साफ सुथरे सब्दो के प्रयोग से अत्यंत प्रभावी बन गए है साथ ही लोक गीतों का प्रयोग भी किया गया है ।
6. अभिनियता - अभिनियता नाटक का प्रांतत है कोई भी नाटक मंच पर अभिनय के लिए लिखे जाते है। अभिनियता कि दृष्टि से बकरी नाटक सर्वेस्वर के नाटकों में सरवत्कृष्ट है । खुले मंच अभिनय की दृष्टि से लिखा गया बकरी नाटक आम आदमी से जोड़ता है नाटक का हर एक प्रसंग अत्यंत आसानी से प्रकट हुआ है। इसी कारण से यह नाटक देश के अनेक भागों में अन्य भाषओं में सफलता पूर्वक रंगमंच पर खेला जा चुका है । इस नाटक की प्रस्तुति से लोग आज की ब्यवस्था पर सोचने समझने और कुछ करने को ततपर होते है यही इस नाटक की सफलता का कारण है ।
मेरे YouTube से भी जुड़ें। शीघ्र ही हिन्दी साहित्य के सभी विषयों पर विडिओ बनाई जाएगी। www.youtube.com/@gobindyadav6676 इस चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें।
7. उद्देश्य - बकरी नाटक समकालीन भारतीय राजनीति के भ्रष्टतंत्र को उजागर करने के उद्देश्य से लिखी गयी है । ग्रामीणों के भोलेपन और मजबूरी को राजनेता किस प्रकार दुरुपयोग कर रहे है इसका स्पस्ट चित्रण यह नाटक करती है। दरअसल यह नाटक शोषण का दस्तावेज है जो समकालीन राजनीति के कुरूपता पर प्रहार करता है इस नाटक में जनचेतना को लोकभाषा और लोकरूपो के माध्यम से सामाजिक अन्याय के साथ जोड़ने का प्रयास करती है । जिस गांधी जी का नाम लेकर राजनेता अपने स्वार्थ के रोटियां सेक रहे है वे उनके सिद्धांतो को थोड़ा भी नही मानते यह नाटक वीरो ओर क्रांतिकारियों के नाम पर अपनी राजनीति चमकाने वाले पर व्यंग्य करता है ।
डॉक्टर अखिलेश गोस्वामी लिखते है – “ आज गांधी जी और गांधीवाद के नाम पर हर एक का रोजगार चमक रहा है ।“
निष्कर्ष रूप मे कहा जा सकता है कि बकरी नाटक राजनीति के दुश्चक्रों और उसमें फसे आम आदमी की व्यथा की कथा है । यह नाटक नाट्य तत्वो के कसौटियों पर पूरी तरह खड़ा उतरता है। इस नाटक में नाटक के सभी तत्व अपने सभी प्रभावशिलता के साथ मौजूद है । नाटक रंगमंच पर प्रदर्शन के लिए लिखे जाते है । बकरी नाटक प्रदर्शन की दृष्टि से अत्यंत लोकप्रिय नाटक रहा है । इसका प्रमाण यह है कि अपने प्रकाशन के तीन वर्षों में यह नाटक तीन सौ से अधिक बार प्रदर्शित हो चुका था यह नाटक देश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति में और अधिक सार्थक हो उठा है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मन्नू भण्डारी – त्रिशंकु
मन्नू भण्डारी – त्रिशंकु “घर की चारदीवारी आदमी को सुरक्षा देती है पर साथ ही उसे एक सीमा में बाँधती भी है। स्कूल-कॉलेज जहाँ व्यक्ति क...
-
वापसी कहानी उषा प्रियंवदा की प्रमुख कहानियों में से एक है जिसमे उन्होंने दो पीढियो के द्वंद को दिखाया गया है । पीढियो के द्वंद से उपजी ...
-
काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित एक वैचारिक निबंध है। यह निबंध विचार प्रधान होते हुए भी भावुकता और बुद...
-
नाखून क्यों बढ़ते हैं? निबंध की समीक्षा नाखून क्यों बढ़ते हैं? एक ललित निबंध है। जिसमें भारतीयता, उसकी महत्ता, यहां के लोगों की सामाज...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें