रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि
- गोबिंद कुमार यादव
मार्क्सवादी समीक्षकों में डॉ. रामविलास शर्मा का नाम अग्रगण्य है। मार्क्सवादी समीक्षा का तात्पर्य उस समीक्षा से है जिसमें 'मार्क्सवाद' को आधार बना कर साहित्य की समीक्षा की जाती है। ऐसे आलोचकों को हिन्दी में प्रगतिवादी समीक्षक भी कहा जाता है। प्रगतिवाद का हिन्दी में प्रारम्भ 1936 ई. के आसपास हुआ अतः प्रगतिवादी समीक्षा का प्रारम्भ भी तभी से माना जा सकता है। मार्क्सवादी समीक्षकों में प्रमुख है-शिवदान सिंह चौहान, प्रकाश चन्द्र गुप्त, अमृतराय, नामवर सिंह और डॉ. रामविलास शर्मा इनमें से डॉ. रामविलास शर्मा की दृष्टि सर्वाधिक पैनी, स्वच्छ एवं विश्लेषणात्मक है।
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कार्ल मार्क्स ने समाज को दो वर्गों में विभक्त किया- शोषक और शोषित। पूंजीवादी अपनी पूंजी के बल पर श्रमिकों का शोषण करता है अतः समाज में वर्ग संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है। मार्क्सवादी समीक्षा में वर्ग संघर्ष, सामाजिक समरसता, समाजोत्थान, शोषितों के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए साहित्य को सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में देखा गया।
डॉ. रामविलास शर्मा की आलोचनात्मक कृतियों में प्रमुख हैं-प्रगति-प्रगति और परम्परा, प्रगतिशील साहित्य की समस्याएं, आस्था और सौन्दर्य, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना, मार्क्सवाद और प्राचीन साहित्य का मूल्यांकन, निराला की साहित्य साधना, भाषा और समाज, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण।
डॉ. रामविलास शर्मा की समीक्षा पद्धति की सामान्य विशेषताओं का निरूपण निम्न बिन्दुओं में किया जा सकता है:
1. डॉ. शर्मा ने मार्क्सवादी सिद्धान्तों के अनुरूप वर्ग संघर्ष एवं समाज में मानव की आर्थिक स्थिति को विशेष महत्व दिया है तथा यही तत्व मार्क्सवादी समीक्षा के मूल आधार हैं।
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2. डॉ. शर्मा यह मानते हैं कि साहित्यकार को वर्गभेद पर आधारित समाज की पहचान होनी चाहिए। वैचारिक स्तर पर वे मार्क्सवाद को नहीं छोड़ सकते और कहते हैं-"पार्टीजन साहित्यकार बनकर ही हम ऐसे साहित्य का निर्माण कर सकेंगे जो अगली पीढ़ियों के लिए मूल्यवान हो।|"
3. 'निराला की साहित्य साधना' में उन्होंने एक ओर तो निराला के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों का प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत किया है तो दूसरी ओर निराला की काव्य प्रतिभा, रचना प्रक्रिया, भाषा एवं काव्य सौन्दर्य को भी उद्घाटित किया है।
4. डॉ. रामविलास शर्मा की एक अन्य महत्वपूर्ण कृति है-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना। इसमें उन्होंने शुक्ल जी की लोकहृदय में लीन होने की कसौटी पर जोर देते हुए उनके अन्तर्विरोधों को भी उजागर किया है।
5. रामविलास जी के प्रारम्भिक समीक्षा ग्रन्थों में इनका तेवर आक्रामक रहा है, किन्तु परवर्ती काल में लिखे गए ग्रन्थों में वह आक्रोश नहीं झलकता। इनमें संयम, विवेक एवं सन्तुलन विद्यमान है।
6. नई कविता के प्रति डॉ. रामविलास शर्मा का रुख कुछ-कुछ उसी प्रकार का है जैसा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का छायावाद के प्रति था। इस नकारात्मक रुख के कारण वे नयी कविता के प्रति न्याय नहीं कर पाए है।
7. जो विचार डॉ. शर्मा की मान्यताओं के उन्हें वे स्वीकार करते हैं, किन्तु जो विचार उनकी मान्यताओं के प्रतिकूल हैं, उन्हें वे किसी स्थिति में स्वीकार नहीं करते। वे समझौतावादी समीक्षक नहीं हैं।
8. 'तुलसी के सामन्त विरोधी मूल्य' नामक रचना में उन्होंने तुलसी के वर्ग चरित्र को प्रस्तुत किया। उन्होंने विद्वत्तापूर्वक, यह सिद्ध किया कि तुलसी शोषितों के साथ हैं तथा शोषण के विरोधी हैं, क्योंकि तुलसी ने स्वयं शोषण को झेला था।
9. भाषा के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करते डॉ. शर्मा लिखते हैं-"भाषा एक हथियार है जिससे हम प्रतिगामी शक्तियों पर प्रहार कर सकते हैं। क्रान्ति के लिए आवश्यक है। अपनी शत्रु रूपी प्रतिगामी शक्तियों को पहचानना।"
10. डॉ. शर्मा अपनी समीक्षा पद्धति में न तो की तरह शालीन हैं और न ही द्विवेदी जी की भांति व्यंग्यात्मक अपितु वे आक्रामक अधिक हैं। प्रतिकूल विचारों पर वे निर्मम प्रहार करते हैं।
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11. विवादास्पद होते हुए भी डॉ. शर्मा मार्क्सवादी समीक्षा एवं मार्क्सवादी चिन्तन के प्रकाश स्तम्भ रहे हैं।
12. डॉ. नगेन्द्र ने रामविलास शर्मा के योगदान पर प्रकाश डालते हुए तथा उनकी कृतियों का महत्व प्रतिपादित करते लिखा है : "पुनर्मूल्यांकन यदि आलोचना के प्रमुख कार्यों में से एक है, तो रामविलास शर्मा ने निश्चय ही हिन्दी साहित्य के अनेक लेखकों-भारतेन्दु, प्रेमचन्द, शुक्ल जी एवं निराला का पुनर्मूल्यांकन कर एक तरह से हिन्दी साहित्य का क्रमबद्ध आलोचनात्मक इतिहास प्रस्तुत करने का काम किया है।"
13. डॉ. शर्मा की मान्यता है कि जिस समाज में वर्गभेद कायम है उसमें वर्गों से परे होकर किसी शाश्वत साहित्य की रचना नहीं की जा सकती।
14. डॉ. शर्मा ने मार्क्सवादी दृष्टि से समूचे हिन्दी साहित्य की परम्परा की नवीन व्याख्या की और इस प्रकार मार्सवादी समीक्षा की शक्ति एवं सामर्थ्य का परिचय दिया।
15. डॉ. रामविलास शर्मा की मान्यता है कि साहित्य का प्रभाव अपने भावमूलक स्वभाव के कारण दर्शन एवं विज्ञान की अपेक्षा अधिक पड़ता है। वह मनुष्य को श्रेष्ठ विचार देता है और उन्हें कार्यरूप में परिणत करने की प्रेरणा देकर वह हमारे मनोबल को दृढ़ करता है। यही नहीं अपितु साहित्य हमारे चरित्र का भी निर्माण करता है।
16. डॉ. शर्मा प्रयोगवाद एवं नयी कविता के हैं यद्यपि अज्ञेय द्वारा प्रकाशित 'तार सप्तक' के सात कवियां में उन्हें भी स्थान मिला है। वे लिखते हैं- 'विषयवस्तु मे निकम्मापन, निर्थकता, निरुद्देश्यता... लिए जनजीवन या तो है नहीं या है तो उन्हीं जैसा विकृत और निरुद्देश्य।"
17. डॉ. शर्मा ने साहित्य में सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर बल दिया। इसी कारण वे प्रेमचन्द के प्रशंसक थे। उनका स्पष्ट धारणा थी कि प्रगतिशील साहित्य युग की मांग को पूरा करने वाला साहित्य है।
18. डॉ. रामविलास शर्मा ने लेनिन की भाषा को आदर्श मानते हुए अपनी भाषा सम्बन्धी दृष्टिकोण का परिचय इन शब्दों में दिया है-"शैली की स्पष्टता, शब्दों का सधा प्रयोग, हास्य-विनोद व व्यंग्य के छीटे, क्रोधावेश में जलते वाक्य, कहावते, मुहावरे, पुराने लेखकों की रचनाओं के उदाहरण लेनिन की शैली की वस्तु है जो बताती है कि इस महान क्रान्तिकारी बिचारक ने भाषा व शब्दों से अपनी व्यंजना के माध्यम पर साहित्य के रूप पर किस प्रकार अधिकार कर लिया था।"
उक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते है कि डॉ. रामविलास शर्मा हिन्दी साहित्य के समर्थ आलोचक हैं तथा उनकी समीक्षा पद्धति प्रगतिशील चेतना से प्रभावित है। माक्क्सवादी सिद्धान्तों पर आधृत उनकी कृतियों ने हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान किया है।
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