शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

रेखाचित्रकार महादेवी वर्मा

 रेखाचित्रकार महादेवी वर्मा :-  महादेवी वर्मा ‘छायावाद’ युग के प्रमुख आलोक स्तम्भों में से एक हैं। प्रसाद, निराला, पंत जैसे कवियों की इस काव्य त्रिवेणी के बीच महादेवी जी ने अपनी रचनाधर्मिता के बल पर न केवल स्त्री प्रतिभा का लोहा मनवाया, वरन् इन कवियों की काव्य सरिता को हिन्दी साहित्य सागर रूपी विविध विधाओं के साथ उनका समन्वय किया है।  हम देखते हैं कि गद्य में जहाँ नवीन विधाओं को अत्यधिक विकसित होने का अवसर प्राप्त हुआ, वहीं दूसरी ओर कविता के लिए भी अपार संभावनाओं के द्वार खुल गए। बहरहाल यहाँ मेरा मन्तव्य महादेवी जी के रेखाचित्रों में रचे-बसे उन तमाम अनुभूतियों में गुंफित कोमल, मधुर स्मृतियों को उजागर करना है, जिसके सहारे लेखिका की जीवन दृष्टि को समझते हुए, उन सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा करना है, जहाँ पहुंच कर मनुष्य; मनुष्य के मध्य का भेद समाप्त हो जाता है। शेष रहती है तो असीम करूणा और चरम शांति।

‘रेखाचित्र’ हिन्दी साहित्य की नवीन किंतु आधुनिक गद्य विधाओं में से एक है। प्रत्येक साहित्यिक विधा ‘वस्तु’ और ‘शिल्प’ की दृष्टि से अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखती है। कोई भी विषय किसी विशेष शिल्प के अंतर्गत संप्रेषण की विशेष योग्यता प्राप्त कर लेता है। इस तरह देखा जाय तो कहा जा सकता है कि चित्रकार की चित्र कला को जो महत्व प्राप्त है वही महत्व रेखाचित्रकार की रचना रेखाचित्र का भी है।

वास्तव में रेखाचित्र ‘शब्दचित्र’ है। जिस प्रकार चित्रकार रंगों के अंकन और सौष्ठव द्वारा चित्र का निर्माण कर उसे प्रभावशाली और सजीव बना देता है, ठीक उसी प्रकार रेखाचित्रकार सौष्ठवपूर्ण शब्दों की सहायता से अपनी रचना को स्वरूप प्रदान करता है। इसकी सफलता रचनाकार के भाषागत वैशिष्ट्य तथा जीवनानुभूतियों की सशक्त अभिव्यक्ति पर आधारित है। हिन्दी साहित्य में जब इस विधा का पहलेपहल पदार्पण हुआ, तो इसकी परिभाषा भी स्वभावतः इसके साथ ही निर्मित हुई। “स्केच की तरह ही रेखाचित्र में भी कम से कम शब्दों में कलात्मक ढंग से किसी वस्तु, व्यक्ति या दृश्य का अंकन किया जाता है। इसमें साधन शब्द होते हैं रेखाएं नहीं”

रेखाचित्र में अनेक साहित्यिक विधाओं की तरंगे उठती रहती हैं। इसमें कहानी का कौतुहल है तो, निबंध की गहराई गद्यकाव्य की भावात्मक लयात्मकता है तो, डायरी में व्यक्त निश्छल मन की अभिव्यक्ति। संस्मरण की व्यक्तिकता है तो, साक्षात्कार का खुलापन। आत्मकथा और जीवनी जैसी आत्मीयता और बेबाकीपन है तो, यात्रावृत्तांत का सीमित विस्तार। व्यंग की छेड़छाड़ है तो, रिपोर्ताज की गुनगुनाहट। विभिन्न साहित्यिक रसों में सराबोर यह रेखाएं अंगड़ाई लेती हुई विशिष्ट शब्द चित्रों में ढल कर एक ऐसा संसार रचती हैं, जिसमें रहने वाले लोग हमारे इसी लोक के प्राणी हैं।

दूसरे शब्दों में कहें तो रेखाचित्र विभिन्न विधाओं की विशेषताओं का विचित्र समुच्चय है। लेकिन सबसे अधिक रेखाचित्र का साम्य संस्मरण के साथ माना जाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि लगभग समस्त विधाओं की विशेषताओं को अपने में समेटे हुए रेखाचित्र की अपनी विशेषता औऱ अपनी पहचान है।

अतिशय संवेदना, विषय संबंधी एकात्मकता, अंतर्मुखी चारित्रिक विशेषता, विश्वसनीयता, सूक्ष्म परिवेक्षण शक्ति, संक्षिप्तता तथा प्रतीकात्मकता आदि इसकी विशेषताएं मानी जा सकती हैं। यद्यपि यह कथेत्तर गद्य विधाओं मे नवीन विधा है और हिन्दी साहित्य में विधा के रूप में प्रतिष्ठित भी हो चुकी है। लेकिन क्या कारण है कि विद्वानों की दृष्टि से रेखाचित्र का सैद्धान्तिक विवेचन ओझल ही रहा?

दूसरे शब्दों में कहें तो रचनात्मक रूप में तो इस विधा को जितनी महत्ता और स्वीकारोक्ति मिली, उतने ही इसके शास्त्रीय स्वरूप की अवहेलना हुई। अतः रेखाचित्र का स्वरूप निर्धारण सरल नहीं है। इसके स्वरूप एवं वैशिष्ट्य को प्रतिस्थापित करने के लिए हमारी दृष्टि में रेखाचित्र लेखकों की रचनाओं का आधार ग्रहण किया जाना अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है।


गोबिन्द कुमार यादव

बिरसा मुंडा कॉलेज

6294524332

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