शनिवार, 3 जुलाई 2021

भाषा और उसके अभिलक्षण

     मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इससे उनका एक दूसरे के संपर्क में आना स्वाभाविक है। संपर्क में आने पर विचार विनिमय अनिवार्य है। अतः जिस साधन से यह विचार विनिमय होता है, उसे ही भाषा की संज्ञा दी जाती है। अथवा यह कहा जा सकता है कि भावाभिव्यक्ति के साधन को सामान्य रूप से भाषा कह दिया जाता है। जब हम भाषा की परिभाषा वैज्ञानिक तरीके से दें तो यह याद रखें कि भाषा विज्ञान में भाषा की परिभाषा को पशु पक्षियों की बोली, इशारे इत्यादि को इस रूप में नहीं लेना चाहिए। सामान्यतः विचार विनिमय के दो साधन माने गए हैं-१)शब्दों एवं वाक्य द्वारा २)संकेतों द्वारा। रेल की हरी झंडी, चौराहे की सिग्नल, चुटकी, ताली आदि की सांकेतिक भाषा को भाषा विज्ञान के वैज्ञानिक एवं संशोधित भाषा के अंतर्गत नहीं देखा जाता। यदि हम भाषा को इशारे से भावा भी व्यक्ति करते हैं तो इसे संकेत अथवा इशारे की भाषा कहते हैं।

      भाषा की उत्पत्ति पर विचार करते हुए पाणिनि उसे भाष धातु से जोड़ा जिसका अर्थ है  ‘व्यक्त वाणी’। भाषा का संबंध व्यक्ति वाणी से है।

    भाषा को लेकर हिंदी और पाश्चात्य विद्वानों में अलग-अलग मत है।

                  पाश्चात्य के विद्वानों का मत

 प्लेटो के अनुसार – “विचार आत्मा की मूक अथवा अध्वन्यात्मक बातचीत है जो ध्वन्यात्मक बनकर होठों पर प्रकट होते ही भाषा कहलाती है।“

स्वीट के अनुसार – “ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति का नाम भाषा है।“

क्रोचे के अनुसार – “भाषा उस स्पष्ट तथा सुगठित ध्वनि को कहते हैं जो अभिव्यंजना के लिए निर्धारित की जाती है।“

ब्लॉक तथा ट्रेजर के अनुसार – “भाषा व्यक्त ध्वनि चिन्हों की वह पद्धति है जिसके माध्यम से समाज के व्यक्ति परस्पर व्यवहार करते हैं।

गार्डनर के अनुसार-  “विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिन व्यक्त और स्पष्ट ध्वनि संकेतों का व्यवहार किया जाता है उसे भाषा कहते हैं।“

                हिंदी के विद्वानों का मत

कामताप्रसाद गुरु के अनुसार-  “भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली-भांति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार स्पष्ट रूप से समझ सकता है।“

मंगल देव शास्त्री के अनुसार- “भाषा मनुष्य की उस चेष्टा या व्यापार को कहते हैं जिससे मनुष्य अपने उच्चारण उपयोगी शरीर अवयवों से उच्चारण किए गए वर्णात्मक या व्यक्त शब्दों द्वारा अपने विचारों को प्रकट करते हैं।

डॉ भोलानाथ तिवारी के अनुसार- “भाषा मानव के उच्चारण अवयवों द्वारा उच्चारित यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की वह संरचनात्मक व्यवस्था है जिसके द्वारा समाज के  लोग आपस में विचार विनिमय करते हैं ।

 

 

 

भाषा के अभिलक्षण।

भाषा पर जब विचार किया जाता है तब उसका आशय मनुष्य की भाषा से होता है। यहाँ अभिलक्षण से तात्पर्य विशेषता से है अथवा मूलभूत लक्षण से है। क्योंकि किसी वस्तु या पदार्थ के लक्षण ही उसे दूसरे पदार्थ से अलग करते हैं। मानव भाषा के अभिलक्षण वे हैं जो उसे अन्य प्राणियों की भाषा से अलग करते हैं। मानव भाषा के अभिलक्षण निम्न है-

1)यदृच्छिकता- यदृच्छिकता का अर्थ है ‘जैसी इच्छा हो’ या ‘माना हुआ’। ऐसा शब्द जो मन मे चित्रित होता है। शब्दो के अंदर निहीत वह बिम्ब जिसको सुनकर हमारे मन में एक चित्र आ जाता है। भोलानाथ तिवारी ने यदृच्छिकता को पहले स्थान पर रखा है।

2)सृजनात्मकता- भाषा की दूसरी विशेषता सृजनात्मकता है। भाषा में शब्द और रूप प्रायः सिमित होते है उन्ही के आधार पर हम अपनी आवश्यकता के अनुसार अनेक वाक्यो का सृजन करते है। इस अभिलक्षण को उत्पादकता भी कहा जाता है।

3)अनुकरणग्रहिता- भाषा में अनुकरण की क्षमता होती है। मानव भाषा जन्मजात नही होती है। इसे हम अनुकरण कर के ही सीखते है। मानवेत्तर जिव जंतुओं की भाषा जन्मजात होती है। किंतु मनुष्य भाषा को अनुकरण कर के सीखता है।

4)परिवर्तनशीलता- मानव भाषा परिवर्तनशील है। मानवेत्तर जीवो की भाषा  परिवर्तित नहीं होती। जैसे कोई भी जानवर पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही प्रकार की अपरिवर्तित भाषा का प्रयोग करते आ रहे हैं किंतु मानव भाषा हमेशा परिवर्तित होती रहती है ।


गोबिंद कुमार यादव

बिरसा मुण्डा कॉलेज

6294524332 

 

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