बुधवार, 4 मई 2022

रामनरेश त्रिपाठी की काव्यगत विशेषता

रामनरेश त्रिपाठी की काव्यगत विशेषता ।

प्रारंभिक स्वच्छंदतावादी कवियों में रामनरेश त्रिपाठी का नाम महत्वपूर्ण है। श्रीधर पाठक ने जिस स्वच्छंदतावाद को जन्म दिया, रामनरेश त्रिपाठी ने अपनी रचनाओं द्वारा उस परंपरा को विकसित और संपन्न किया। देश प्रेम तथा राष्ट्रीयता की अनुभूतियां उनकी रचनाओं का मुख्य विषय रही है। हिंदी कविता के मंच पर वे राष्ट्रीय भावनाओं के गायक के रूप में बहुत लोकप्रिय हुए। रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित साहित्य वैविध्य पूर्ण है।

     रामनरेश त्रिपाठी ने अपने काव्य में परंपराओं का निर्वाह की अपेक्षा नवीन प्रवृत्तियों को अपनाने के प्रति अधिक आग्रह दिखाया। इन्होंने अपने काव्य में सीमित पात्रों का प्रयोग किया है। मुख्य रूप से नायक और नायिका दो ही पात्र अपनाया गया है। इनके नायकों के व्यक्तित्व का अंकन किसी महापुरुष के अभाव युक्त, गौरवशाली, शक्ति संपन्न, रूपरेखा से कम सुंदर नहीं है-

        सिकुरण रहित ललाट ललित अति,

         उन्नत कला विधान।

        पौरुषपूर्ण विषाद वक्षस्थल,

        वृषभ कन्द बलवान।

       हिंदी काव्य में विरह नारियों की अंतर्दशाओं का पर्याप्त चित्रण हुआ है। किंतु वहीं पुरुषों की दशा की अभिव्यक्ति का अभाव है। लेकिन प्रिय वियोग का विरह पुरुष के हृदय में भी होता अवश्य ही है जिसका चित्रण रामनरेश त्रिपाठी ने निम्न पंक्तियों में किया है-

          प्रेम पद्मिनी! प्रेमलता हे! प्राण बल्लभे! हे प्राणेश्वरी।

          मेरी प्रिय पद्मिनी कहां हो? हे मेरी जीवन सहचरी।

       कवि का मूल उद्देश्य राष्ट्रीयता है। इनके नायक एवं नायिकाएं देश की विपन्नता पर आंसू नहीं बहाते। इससे उनके उत्साह भावना और को बल मिलता है और यह जन संगठन में जुड़ जाते हैं-

         देखा उसने उसी भांति के अनगिनत नर कंकाल।

         चिपके पेट रीढ़ के जिनकी चुपके पुचके जाल।

      अलगाववाद, नस्लवाद, जातिवाद और संप्रदाय के दीवारें भारतीय चिंतन के इस वेदांत ज्ञान सागर के में गिर जाते हैं। त्रिपाठी जी के लिए भारतीयता का अर्थ है जहां सब अपने ही आत्म के अंश हैं-

         तू रूप है किरण में, सौंदर्य है सुमन में।

          तू प्राण है पवन विस्तार है गगन में ।

         तू ज्ञान हिंदुओं में, ईमान मुस्लिमों में,

          विश्वास क्रिश्चियन में तो सत्य है सृजन में।

      त्रिपाठी जी के काव्य में शोक भाव की अभिव्यक्ति सशक्त बन पड़ी है। शोक भाव कविता मुख्यता दो रूपों में आती है। प्रथम अपनी विपत्ति या कष्ट से। इस प्रकार का वर्णन इन के काव्य में पूर्णता अभाव है। दूसरे प्रिय वस्तु या दुष्ट जन के विनाश का अंत भी बड़ा दुखद है यहां सुख भाव के दर्शन हैं-

        रोये वृद्ध कहां है जीवन का अनमोल सहारा,

       रोकर गिरे अचेत युवक है साथी कहां हमारा।

      रामनरेश त्रिपाठी स्वदेश, प्रेम मानव सेवक और पवित्र प्रेम के गायक हैं। इनकी रचनाओं में छायावाद का सौंदर्य एवं आदर्शवाद का दृष्टिकोण एक साथ ही मिल गया है। भारत के गौरवपूर्ण अतीत का वर्णन करते हुए कवि कहता है-

         शोभित है सर्वोच्च मुकुट से जिनके देश का मस्तक।

        गूंज  रही है सकल दिशाएं जिनके जय गीतों से अब तक।

       इससे स्पष्ट होता है कि इनके काव्य में जीवन का जो पक्ष अपनाया गया है इन की व्याख्या अपने आप में पूर्ण है। प्रेम और राष्ट्र भावना को प्रकृति की पृष्ठभूमि देकर मानविय साँचे में ढालकर उज्जवल रूप दिया गया है। त्रिपाठी जी के तीनों खंड काव्य की मूल चेतना एक ही है। श्रीधर पाठक ने जिस स्वच्छन्दतावाद का मार्ग उठाया उस पर चलने वालो में रामनरेश त्रिपाठी महत्वपूर्ण है।

गोबिंद कुमार यादव, बिरसा मुंडा कॉलेज, 6294524332

 

 










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