तुलसी
के पद
1. ऐसी मूढता या मन की।
परिहरि रामभगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की।
धूम समूह निरखि-चातक ज्यौं, तृषित जानि मति धन की।
नहिं तहं सीतलता न बारि, पुनि हानि होति लोचन की।
ज्यौं गज काँच बिलोकि सेन जड़ छांह आपने तन की।
टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आनन की।
कहं लौ कहौ कुचाल कृपानिधि, जानत हों गति मन की।
तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निज पन की।
2. कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो।
श्रीरघुनाथ-कृपाल-कृपातें संत-सुभाव
गहौंगो॥
जथालालभसंतोष सदा, काहू सों कछु न
चहौंगो।
पर-हित-निरत निरंतर, मन, क्रम बचन नेम
निबहौंगो॥
परुष वचन अति दुसह श्रवन सुनि तेहि
पावक न दहौंगो।
बिगत मान, सम सीतल मन, पर-गुन नहिं
दोष कहौंगो॥
परिहरि देह-जनित चिंता, दुख-सुख
समबुद्धि सहौँगो।
तुलसीदास प्रभु यहि पथ रहि अबिचल
हरि-भगति लहौंगो॥
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