कबीर के दोहे
1.राम नाम कै पटंतरे, देबे कौं कुछ नाहिं।
क्या लै गुरु संतोषिए, हौंस रही मन माँहि॥
2.हंसि हंसि कंत न पाइए जिनि पाया तिनि
रोइ।
जो हाँसेही हरि मिलै तो नहीं दुहागनि कोइ॥
3. कायर बहुत पमांवहीं, बहकि न बोलै सूर।
काम पड्यां हीं
जाणिये, किस मुख परि है नूर!!
4.भक्ति दुहेली राम की , नही कायर का काम।
शीश उतारे हाथ लै, सो लेही हरी नाम।।
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