बिहारी के दोहे
1.तंत्री-नाद कबित्त-रस सरस राग रति-रंग।
अनबूड़े बूड़े तरे जे बूड़े सब अंग॥
2.या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं
कोइ।
ज्यौं-ज्यौं बूड़ै स्याम रँग त्यौं-त्यौं उज्जल होइ॥
3.स्वारथु सुकृत न स्रमु बृथा देखि बिहंग बिचारि।
बाज पराऐं पानि परि तूँ पच्छीनु न मारि॥
4. जोरी जुरे क्यों न सनेह गँभीर।
को घटि ए बृषभानुजा वे हलधर के बीर॥
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