बुधवार, 30 जून 2021

रजिया रेखाचित्र के आधार पर रजिया का चरित्र चित्रण





रजिया रामबृक्ष बेनीपुरी के रेखाचित्र संग्रह 'माटी की मुर्ते' में संग्रहित है जिसमे उन्होंने ग्राम चरित्रों को बखूबी चित्रित किया है। रजिया रेखाचित्र को भी उन्होंने ज्यो का त्यों चित्रित कर दिया है यही इस रेखाचित्र की सुंदरता है। इसमें रजिया के समूचे जीवन का सरस और सलोना चित्र लेखक ने खिंचा है। उसका संपूर्ण जीवन एक सजीवता, मधुरता और मनोहरता में नृत्य करता हुआ प्रतीत होता है। लेखक ने रजिया के बाह्य वर्णन, वेशभूषा का सूक्ष्म वर्णन इतनी तल्लीनता के साथ किया है कि उसका वास्तविक रूप मूर्तिमान हो गया है। इस रेखा चित्र में लेखक ने रजिया के बालपन से लेकर बृद्धावस्था तक का वर्णन इतनी स्पष्टता एवं कलात्मक तरीके से किया है कि उसका संपूर्ण जीवन दृश्यमान हो जाता है। लेखक ने रजिया के वाह्य एवम आतंरिक सौंदर्य पूरी सफलता के साथ उभरा है। इस रेखाचित्र में रजिया की निम्न विशेषताएं देखने को मिलती है।
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1)बाह्य सौंदर्य- रेखाचित्र के प्रारंभ में ही लेखक रजिया के रूप सौंदर्य का चित्रण करता है। रजिया अपने बाल्यावस्था मे जितनी आकर्षक और सुन्दर दिखती है उम्र बढ़ने के साथ उसका सौंदर्य और भी निखारता जाता है। रजिया के नाल्यावस्था के सौंदर्य का चित्रण लेखन निम्न पंक्तियों में करता है-“ गोर चेहरे तो मिले है किन्तु इसकी आँखों में जो अजीब किस्म का नीलापन दीखता वह कहा, और समूचे चेहरे की काट भी कुछ निराली जरूर।“ रजिया का सौंदर्य किशोरावस्था में और निखरता गया और उसका एक स्वतंत्र अस्तित्व भी बनता गया। “ रजिया बढ़ती गई बच्ची से किशोरी हुई और अब जवानी के फूल उसपर खिलने लगे है। अब भी वह अपनी माँ के साथ आती है, कनितु पहले वह अपनी माँ की एक छाया मात्र लगती थी किन्तु अब उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व भी है और उसकी छाया बनने के लिए कितनो के दिलो में कसमसाहट है।“



2) संकोच एवं प्रेम भाव- लेखक का रजिया के साथ जो सम्बन्ध है उसे न दोस्ती कहा जा सकता है और न ही प्रेम। न सिर्फ लेखक ही रजिया भी सामान भाव से लेखक की तरफ आकर्षित थी। बाल्यावस्था में यह आम बात थी। जब भी लेखक गाँव अत रजिया सहज भाव से उसके पास आ जाती और ढेर सारी इधर-उधर की बाते करती। किन्तु उम्र के बढ़ने के साथ यह भाव भी बदलता गया। जब भी लेखक रजिया बाते करते गाँव के लोग उन्हें दूसरी निगाहों से देखने लगते, इस कारण रजिया में संकोच बढ़ता गया। “ फिर कुछ दिनों बाद पाया, वह अब सकुचा रही है। मेरे निकट आने के पहले वह इधर-उधर देखती है। और जब कुछ बाते करती तो ऐसी चौकन्नी से कि कोई देख न ले, सुन न ले।“

3) परिश्रमी- रजिया जन्मना परिश्रमी थी। उसके जन्म के बाद ही उसकी नियति अपने पारिवारिक कार्यक्षेत्र में जाना निश्चय था। बचपन से ही वह अपनी माँ के साथ चूड़ियां बेचने जाया करती थी और शीघ्र ही वह चूड़ियां बेचने और पहनने में पारंगत भी हो गयी। उसे चूडीहरिनो की सभी अदाएं आ गयी जो उसके पेशे के लिया आवश्यक है। “हा, रजिया अपने पेशे में भी निपुण होती जाती थी। चुड़िहारिन के पेशे के लिए सिर्फ यही नही चाहिए कि उसके पास रंग-विरंग की चूड़ियां हो- सस्ती, टिकाऊ....बल्कि यह पेशा चूड़ियों के साथ चूडीहरिनो में बनाव-श्रृंगार, रूप-रंग, नाजोअदा खोजता है।“ रजिया बहुत शीघ्र ही इसमें पारंगत हो गयी थी।

4) खुशहाल- रजिया का जीवन बेहद खुशहाल था। वह मेहनती थी। उसने प्रेम विवाह भी किया। उसके तीन पुत्र भी हुए । उनके भी बच्चे हुए। पुरे रेखाचित्र मे कही भी उसके जीवन की परेशानियों का चित्रण नही हुआ है। जीवन की स्वाभाविक उत्तर चढ़ाओ तो आते रहते है किंतु कही भी ऐसा चित्र नही उभरा है जहाँ यह दिखे कि राजियो के जीवन में किसी प्रकार की कोई परेशानी हो।
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5) ईमानदार- रजिया अपने जीवन और पेशे दोनों में ईमानदार है। अपने रिश्ते के प्रति भी वह पूर्ण ईमानदार है। वह लेखक और अपने बिच के दोस्ती को अपने पति से कभी नही छिपाती। रजिया का व्यक्तित्व एक ईमानदार युवती का है।

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते है कि रजिया रेखाचित्र में लेखक ने एक ऐसे ग्रामीण युवती का चित्र खिंचा है जो रूप सौंदर्य से लेकर उद्दात व्यक्तित्व के धनि है। उसका चरित्र एक आदर्श स्त्री का चरित्र है जिसने दोस्ती और पारिवारिक सम्बन्ध को ईमानदारी से निभाया है।









गोबिन्द कुमार यादव

बिरसा मुंडा कॉलेज



6294524332

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