बुधवार, 30 जून 2021

महाकवि जयशंकर प्रसाद रेखाचित्र के आधार पर प्रसाद का चरित्र-चित्रण





'महाकवि जयशंकर प्रसाद' शीर्षक रेखाचित्र में शिवपूजन सहाय ने बताया कि प्रसाद महान् साहित्यकार एवं महाकवि थे। इसके अलावा वे विलक्षण स्मृति-शक्ति से सम्पन्न थे। वे स्वजातीय गुणों से युक्त और अनेक कलाओं के मर्मज्ञ थे। काशी की सभी विशेषताओं के भी विशेषज्ञ थे। वे काशी के पुराने, रईसों, पण्डितों, नर्तकों, लावनीबाजों एवं गायिकाओं आदि सभी की कहानियों के ज्ञाता थे। वे धर्मात्मा प्रवृत्ति के थे। व्यापारियों, मल्लाहों, सुनारों आदि की बोलियों और पशु- पक्षियों के लक्षणों के ज्ञाता भी थे।

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प्रसाद की वैदिक वाङ्गय और प्राचीन इतिहास में गहरी पैठ थी। संस्कृतसाहित्य के प्रमुख अंगों का अध्ययन-मनन करने में वे सदैव तत्पर रहते थे। शालिहोत्र एवं आयुर्वेदशास्त्र के महत्त्वपूर्ण प्रकरणों को लेकर सुन्दर प्रवचन देते थे। उन्हें मोती, हीरा आदि रत्नों के गुण-दोषों को पूरा ज्ञान था। इसी प्रकार किमाम-इत्र आदि के निर्माण में दक्ष थे। काठौषधियों और जड़ी-बूटियों के ज्ञान में वैद्यक-ग्रन्थों के श्लोक उपस्थित कर देते थे। इस प्रकार प्रसाद लोक-ज्ञान से सम्पन्न महापुरुष थे।

आचार्य शिवपूजन सहाय ने 'महाकवि जयशंकर प्रसाद' रेखाचित्र में प्रसादजी के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताओं का वर्णन किया है। तदनुसार उनके व्यक्तित्व का निरूपण इस प्रकार है।

1. महान् साहित्यकार - प्रसाद महान् साहित्यकार एवं महाकवि थे। उन्होंने नाटक, उपन्यास, महाकाव्य आदि की रचना से हिन्दी साहित्य के भण्डार को समृद्ध किया। जब साहित्य के विविध पक्षो पर सभी साहित्यकार बाते करने लगते “तब प्रसाद जी की सरस्वती का मुखर होना देखकर चकित रह जाना पड़ता।“

2. प्रतिभासम्पन्न व्यक्तित्व - प्रसाद अनुपम प्रतिभासम्पन्न थे। उन्होंने अपनी रचनाओं तथा अन्य कार्यों में विशिष्ट प्रतिभा का परिचय दिया। साहित्य के सभी विधाओं पर प्रसाद का असाधारण अधिकार था। उनकी साहित्यिक प्रतिभाओं पर हिंदी जगत आज भी गर्व अनुभव करता है। “ हिंदी को प्रसाद जी कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध आदि के रूप में जो निधि दे गए है, उसका मूल्याङ्कन कर के आज गौरव का अनुभव किया जा रहा है।“

3. कला-मर्मज्ञ - प्रसाद अनेक कलाओं के मर्मज्ञ थे। वे काशी की विशेषताओं के विशेषज्ञ थे। पाककला के ज्ञाता और अपने व्यवसाय मे कुशल थे। उन्हें न सिर्फ साहित्य बल्कि विविध कलाओं में भी पारंगत थे।

4. सर्वशास्त्रज्ञ - प्रसाद की भारतीय शास्त्रों में, आयुर्वेद, शालिहोत्र, वेद, उपनिषद एवं संस्कृत साहित्य के सभी अंगों में गहन गति थी। उन्होंने शास्त्रों का गहन अध्ययन किया था। रेखाचित्र में लेखक लिखते हैं - "वैदिक ऋचाएं और उपनिषदों के लच्छेदार वाक्य तो उन्हें कण्ठस्थ थे ही,संस्कृत महाकवियों ने किस शब्द क कहा किस अर्थ में कैसा चमत्कार्पुर्ण प्रयोग किया है,इसको भी वे सोदाहरण उपस्थित करते चलते हैं। शालिहोत्र और आयुर्वेद-शस्त्रों के महत्वपुर्ण प्रकरणों पर उनके प्रवचन सुनने से उनके विस्तृत ज्ञान पर आश्चर्य होता था।" साहित्य अपने निबंधों में उनके शास्त्रों की गहन जानकारी को हम देख सकते है।

5. लोकज्ञान से सम्पन्न प्रसाद को विभिन्न व्यवसायों की पारिभाषिक शब्दावली और विविध बोलियों का गहन ज्ञान था। न सिर्फ हिंदी ब्रज भाषा का भी प्रसाद को अच्छा ज्ञान था। अपनी प्रारंभिक कविताएं वे ब्रज में ही किया करते थे।"खडीबोली हिंदी में ही काव्य रचना करते थे किंतु प्राचीन ब्रजभाषा काव्य में भी मर्मज्ञ थे। ब्रजभाषा सहित्य के बडे अनुरागी और प्रशंसक थे।" लोक को देखने एवं लोक संवेदना का चित्रण उनकी कविताओं में भी देखने को मिलता है।
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6. व्यवसाय में कुशल - प्रसाद अपने पैतृक व्यवसाय में कुशल थे तथा किमाम-इत्र आदि को बनाने में दक्ष थे। व्यवसाय उन्हें पारिवारिक विरासत में मिली थी। और उस व्ययसाय में वे कुशल और पारंगत थे।

7. स्वाध्यायशील - प्रसाद विद्याव्यसनी थे और रात्रि में स्वाध्याय में निरत रहते थे। स्वाध्याय से ही उन्होंने सभी शास्त्रों एवं कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। स्वाध्याय से ही उन्होंने वेद, उपनिषद, लोकशास्त्र का गहन अध्ययन किया था।







गोबिंद कुमार यादव



बिरसा मुंडा कॉलेज

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