गुप्तजी की राष्ट्रीय भावना।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के कवि हैं अतः उनके काव्य में द्विवेदीयुगीन समाज सुधार की भावना, राष्ट्रीयता, जन-जागरण की प्रवृत्ति एवं युगबोध विद्यमान है। उनकी कृति 'भारत-भारती' में भारत के अतीत गौरव के साथ-साथ वर्तमान दुर्दशा की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है और परतन्त्रता की बेड़ियां तोड़ने का आह्वान है। इन्हीं कारणों से इस कृति को तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया था। इसके अतिरिक्त उनके अन्य काव्य-ग्रन्थों में भी राष्ट्र-प्रेम, देश-सेवा, त्याग और बलिदान की प्रेरणा दी गई है। 'स्वदेश संगीत' में उन्होंने परतन्त्रता की घोर निन्दा करते हुए भारत की सुप्त चेतना को जगाने का प्रयास किया तो 'अनघ' में सत्याग्रह की प्रेरणा देते हुए राष्ट्र-सेवा, राष्ट्र-रक्षा, आत्मोत्सर्ग की भावनाओं का निरूपण किया। 'वकसंहार' में उन्होंने अन्याय दमन की प्रेरणा दी और 'साकेत' में स्वावलम्बन का पाठ पढ़ाया। 'यशोधरा' और 'द्वापर' में उन्होंने नारी भावना की अभिव्यक्ति की तथा राष्ट्र और समाज को उसके कर्तव्य का बोध कराया। इस प्रकार गुप्तजी ने सच्चे अर्थों में अपनी रचनाओं से राष्ट्र-प्रेम जाग्रत किया और समाज-सुधार की प्रेरणा दी। गुप्तजी की मान्यता थी कि कला का उद्देश्य मात्र मनोरंजन करना नहीं है अपितु वह लोककल्याण की विधायक भी होनी चाहिए।
"केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए,
समें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।।
बाबू गुलाबराय जी का मत है कि "गुप्तजी की कविता में राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता है।" उनकी रचनाओं में सत्याग्रह, मानवतावाद, अहिंसा, विश्व-प्रेम और श्रमजीवियों के प्रति सम्मान भाव मिलता है। अपने युग को नवीन स्फूर्ति प्रदान करते हुए गुप्तजी ने जनता को जाग्रत करने में अपनी भूमिका का सफल निर्वाह किया है।
मैथिलीशरण गुप्त ने अपने काव्य-संकलन 'वैतालिक' के जागरण गीतों से भारतवासियों में स्वाभिमान जगाने के प्रयास किया, 'किसान' नामक काव्य में किसानों की दयनीय दशा पर क्षोभ व्यक्त किया और उसके शोषण को तत्काल समाप्त किए जाने पर जोर दिया। गुप्तजी द्वारा 'गुरुकुल' काव्य में सिक्खों के बलिदानपूर्ण आख्यानों द्वारा देशवासियों में राष्ट्रीयता जगाने का प्रयास किया। 'अर्जन और विसर्जन' की रचना करके उन्होंने देशवासियों को शिक्षा दी कि स्वतन्त्रता के लिए बलिदान एवं त्याग करने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
'विश्व-वेदना' नामक काव्यग्रन्थ में उन्होंने युद्ध की विभीषिका से राष्ट्र को परिचित कराया एवं अधिक कर लगाने की नीति का घोर विरोध किया। 'अंजलि और अर्घ्य' नामक काव्यग्रन्थ उन्होंने पूज्य महात्मा गांधी के निधन पर लिखा जिसमें कवि ने गांधीजी के विशिष्ट गुणों, विविध उपकारों एवं कार्यों से जन-जन को परिचित कराया। 'जयभारत' महाभारत के कथानक पर आधारित भारत के अतीत गौरव का गान है। 'राजा-प्रजा' नामक काव्यग्रन्थ में उन्होंने शासक एवं प्रजा के कर्तव्यों का उल्लेख किया है।
डॉ. सत्येन्द्र ने उनके विषय में लिखा है "राष्ट्रीयता गुप्तजी का उद्देश्य है, पर संस्कृति शून्य राष्ट्रीयता उन्हें ग्राह्य नहीं है।" निःसन्देह गुप्तजी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीयता से उद्दीप्त भावों को जन-जन के हृदय में भरने का प्रयास किया और उन्हें पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त होने के लिए प्रेरणा दी। राष्ट्रीयता पोषक विचारों के कारण ही सन् 1936 ई. में महात्मा गांधी ने उन्हें काशी में 'राष्ट्रकवि' की उपाधि से विभूषित किया। उन्होंने जीवन पर्यन्त राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत काव्य की रचना करके इस उत्तरदायित्व का निर्वाह किया। डॉ. उमाकान्त ने उनके विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए ठीक ही लिखा है- "भारतीय संस्कृति के प्रवक्ता होने के साथ-साथ मैथिलीशरणजी प्रसिद्ध राष्ट्रीय कवि भी हैं। उनकी प्रायः सभी रचनाएं राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत हैं।" निश्चय ही राष्ट्रीय काव्यधारा में गुप्तजी महत्वपूर्ण स्थान के अधिकारी हैं।
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