प्रश्न-1 रिपोर्ताज से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं को लिखिए ।
उत्तर- रिपोर्ताज—’रिपोर्ताज’
फ्रेंच भाषा का शब्द है तथा अंग्रेजी के ‘रिपोर्ट’ शब्द से इसका घनिष्ठ सम्बन्ध है।
किसी घटना के विवरण को ‘रिपोर्ट’ कहते हैं, जो प्राय: समाचार
पत्रों के लिए लिखी जाती है।
रिपोर्ताज का लेखक रिपोर्ताज में युद्ध, महामारी, अकाल,
बाढ़ आदि के दुष्परिणाम का आँखों देखा समचार वर्णित करता है, पर उसका उद्देश्य सूचना देना भर नहीं होता। इसके पीछे उसकी एक विशेष
दृष्टि होती है। लेखक का मुख्य उद्देश्य महामारी, बाढ़,
अकाल आदि से उत्पन्न विषम स्थितियों से लाभ उठाने वाले मुनाफाखोरों
पर व्यंग्य करना होता है। यूँ तो रिपोर्ताज में विनाशकारी घटना के वर्णन पर लेखक
की दृष्टि टिकी होती है और पात्र उसके लिए विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं होते, तथापि मानव-मूल्यों का नाश करने वाले कुछ पात्रों के अमानवीय कार्यों का
वर्णन भी लेखक ही करता है। इस प्रकार एक वाक्य में यह कहा जा सकता है कि जब कोई
समाचार केवल समाचार नहीं रहता, वरन् मानवमूल्यों से जुड़कर
साहित्य की स्थायी सम्पत्ति बन जाता है, तब उसे ‘रिपोर्ताज’
कहते हैं।
परिभाषाएँ—
“डॉ.
नगेन्द्र के अनुसार, “रिपोर्ट में जहाँ कलात्मक अभिव्यक्ति
का अभाव होता है तथा तथ्यों का लेखा-जोखा मात्र रहता है, वहाँ
रिपोर्ताज में तथ्यों को कलात्मक एवं प्रभावोत्पादक ढंग से व्यक्त किया जाता है।
इस रचना-विधा का प्रादुर्भाव सन् 1936 के आस-पास द्वितीय
विश्वयुद्ध के समय हुआ था। रूसी साहित्यकारों ने इसका विशेष प्रचार-प्रसार किया ।
इलिया एटेनबुर्ग ने रिपोर्ताज-लेखन का कुशल परिचय दिया। हिन्दी में रिपोर्ताज –
लेखन की परम्परा शिवदान सिंह चौहान की रचना ‘लक्ष्मीपुरा’, जो
‘रूपाभ’ पत्रिका में सन् 1938 में प्रकाशित हुई, से आरम्भ मानी जाती है । “
डॉ. तिलकराज शर्मा के अनुसार, “पत्रकारिता
से सम्बन्धित नव्य विधा रिपोर्ताज को समाचार निबन्ध और कहानी की मध्यवर्ती विधा
माना गया है। यह प्रायः घटना- प्रधान सर्जना है। इसमें प्रायः सत्य घटित घटनाओं को
इस प्रकार के आवेश एवं शिल्प-सौन्दर्य के साथ चित्रित किया जाता है कि ये
प्रत्यक्ष दर्शक सी बन जाती है। वातावरण एवं दृश्यविधान इसकी प्रमुख विशेषताएँ
हैं। सत्य के साथ यहाँ कल्पना और भावना का भी समन्वय हो जाता है। कल्पना और भावना
का प्रयोग मात्र दृश्य विधान की सजीवता और प्रभाव के लिए किया जाता है।”
डॉ. भगीरथ मिश्र के अनुसार, “किसी
घटना या दृश्य का अत्यन्त विवरणपूर्ण, सूक्ष्म तथा रोचक
वर्णन इसमें इस प्रकार किया जाता है कि वह हमारी आँखों के सामने प्रत्यक्ष हो जाए
और हम उससे प्रभावित हो उठें।”
रिपोर्ताज की विशेषताएँ– उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर रिपोर्ताज की निम्नलिखित
विशेषताएँ होती हैं—
(i) रिपोर्ताज
निबन्ध की श्रेणी में आते हैं कथा, साहित्य अथवा जीवन के
क्षेत्र में नहीं ।
(ii) रिपोर्ताज
का उद्देश्य सामूहिक प्रभाव उत्पन्न करना होता है।
(iii) रिपोर्ताज पढ़कर ऐसा लगना चाहिए, मानो वह घटना को
प्रत्यक्ष अपनी आँखों से देख रहा है ।
(iv) रिपोर्ताज
में घटना के सभी पात्रों का चित्रण होना चाहिए, तभी वह
प्रभावपूर्ण सिद्ध हो सकेगा।
(v) रिपोर्ताज
लिखते समय लेखक को वर्ण्य-वस्तु अथवा घटना का पूर्ण वर्णन ज्ञात होना चाहिए।
(vi) रिपोर्ताज
में वर्णित घटना अथवा दृश्य काल्पनिक न होकर वास्तविक होता है।
(vii) रिपोर्ताज अत्यधिक रोचक तथा मनोरंजक एवं विवरणात्मक शैली में लिखा जाता है
।
(viii) यह किसी दृश्य अथवा चरित्र का नहीं, बल्कि किसी विषय
का होता है।
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