मंगलवार, 25 अगस्त 2020

चित्रलेखा उपन्यास में व्यक्त पात्र-योजना

      चित्रलेखा उपन्यास में व्यक्त पात्र-योजना

कोई भी साहित्यिक रचना हो, उसमें पात्रों का महत्त्व सर्वाधिक होता है। पात्र ही रचना को मानवों की कथा बताते हैं। प्रत्येक रचनाकार पात्रों की कल्पना के साथ-साथ उनके चरित्र एवं विशेषताओं पर सबसे अधिक ध्यान देता है। भगवतीचरण वर्मा ने भी अपने दार्शनिक उपन्यास चित्रलेखा में पात्रों की योजना अपने कौशल और अपनी कल्पनाशीलता का परिचय दिया है। ‘चित्रलेखा’ के सभी पात्र व्यक्ति पात्र हैं, वे समूह के प्रतिनिधि नहीं हैं। भगवतीचरण वर्मा ने अपने उपन्यास 'चित्रलेखा' में जिन पात्रों की कल्पना की है, वे समाज में देखने को नहीं मिलते हैं।


     चित्रलेखा उपन्यास शिष्यों की जिज्ञासा से प्रारम्भ होता है। महाप्रभु रत्नाम्बर के दोनों शिष्य-श्वेतांक और विशालदेव अपनी शिक्षा की समाप्ति पर यह जानना चाहते हैं कि पाप क्या है? जब शिक्षा पूरी हो चुकी है और जब शिष्य विद्यालय छोड़कर समाज में प्रवेश करने वाले हों, उस समय 'पाप क्या है?' की जिज्ञासा विचित्र है। दोनों शिष्य-श्वेतांक और विशालदेव पापं को जानना चाहते हैं । पाप को जानने का उद्देश्य यही हो सकता है कि वे पाप से बचें। फिर भी यह प्रश्न सामान्य नहीं है। भारतीय साहित्य में वेद., उपनिषद, पराण, नाटक, महाकाव्य आदि में किसी पात्र ने भी किसी के सामने पाप को जानने की इच्छा प्रकट नहीं की है ।

    शिष्यों के ही समान अद्वितीय हैं, उनके आचार्य महाप्रभू रत्नाम्बर। वे इस प्रश्न का उत्तर दन के लिए अपने दोनी शिष्यों को ऐसे दो व्यक्तियों के यहाँ स्थापित करते हैं, जिनमें प्रत्यक्ष रूप से एक पापी है। बीजगुप्त विवाह किये बिना नर्तकी चित्रलेखा को पत्नी के रूप में रखे पाप क्या है? का उत्तर जहाँ मिल सकता है, ऐसे दूसरे व्यक्ति योगी कुमारगिरि का है रत्नाम्बर का पहला शिष्य श्वेतांक बीजगुप्त के यहाँ जाता है तो दूसरा शिष्य विशालदेव यागा कमारगिरि से देक्षा ग्रहण करता है। भगवतीचरण वर्मा ने भहाप्रभ रत्नाम्बर के कथन के द्वारा शिक्षा का अपेक्षा अनुभव की श्रेष्ठता की है। उन्होंने महाप्रभु रत्नाम्बर द्वारा श्वेतांक और विशालदेव से कहलवायां है-"जो बात अध्ययन से नहीं जानी जा सकती है. उसको अनुभव से जानने का प्रयत्न करने के लिए मैं तुम दोनों को संसार में भेज रहा हूँ ।'

      का कथन और कार्य उसके चरित्र को रेखांकित करता है। महाप्रभु रत्नाम्बर ने अपने शिष्यों से जो कहा, उससे स्पष्ट है कि वे स्पष्टवादी हैं और अपनी कमी तथा असफलता की भी घोषणा कर सकते हैं। ऐसे व्यक्ति शुद्ध और स्पष्ट चरित्र वाले होते हैं। बीजगुप्त और कुमारगिरि के मध्य की कड़ी है-चित्रलेखा। चित्रलेखा का चरित्र भी अधिकांश रूप में उसके कथनों से प्रतीत हो जाता है। चित्रलेखा ने कुमारगिरि को अनेक बार गुरुदेव कहा और उनसे दीक्षा लेने की प्रार्थना की, पर उसने अपने कुछ स्पष्ट कथनों से भी अपने चरित्र को पर्याप्त ऊपर उठा दिया है। चित्रलेखा कुमारगिरि को बार-बार गुरुदेव कह रही थी और स्वयं को उनकी दासी बता रही थी, पर कुमारगिरि की कुटी में जाने का जो उद्देश्य था, उसे भी उसने स्पष्ट कर दिया--"अपनी विजय पराजय की अवहेलना करके एक बार तुम मुझसे सत्य बोले थे, मैं भी तुम से सच ही कहूँगी। मैं तुमसे प्रेम करने आयी हूँ।"

    चित्रलेखा ने अपने एक संवाद के द्वारा नारी का स्वभाव भी स्पष्ट किया है। नारी उस व्यक्ति से प्रेम नहीं कर सकती जो उसके आगे समर्पण कर दे । नारी अपने ऊपर शासन करने वाले पुरुष से प्रेम करती है। कुमारगिरि ने चित्रलेखा से कहा “तुम मेरी शिष्या हो । तुम्हारा कर्त्तव्य है कि तुम मेरी बात मानो।“

    इसे सुनकर चित्रलेखा ने जो कहा, वह उसके दृढ़ निश्चय को रेखांकित करता है। उसने कुमारगिरि को उत्तर दिया-"योगी! अपने को भूलो मत। तुम्हारे सामने जो स्त्री खड़ी है, वह इतनी असहाय नहीं है कि उस पर शासन कर सको। तुम समझते हो कि तुमने मुझे ही दीक्षा दी है, यह तुम्हारा भ्रम है, नहीं, यहाँ पर तुम अपने को ही धोखा दे रहे हो। तुम जिसे आज्ञा दे रहे हो? क्या तुम यह नहीं जानते हो कि जिस पर तुम शासन करना चाहते हो, तुमने अपने को उसका दास बना लिया है।"

    चित्रलेखा के निर्भीक और दबंग चरित्र का ज्ञान उसके उस कथन से भी होता है जो उसने महासामन्त मृत्युंजय के प्रीतिभोज में अपने ऊपर व्यंग्य करने वाली उच्च कुल की नारी ने किया था । उसने चित्रलेखा पर व्यंग्य करते हुए कहा था- "आज नर्तकी चित्रलेखा को हमारी समता करके हमारे समाज में आने के उपलक्ष्य में बधाई है।"

      चित्रलेखा ने यह सुनकर जो कहा, वह उसके दृढ़ चरित्र और किसी से प्रभावित न होने का प्रमाण है। चित्रलेखा ने उत्तर दिया- "अपने सौन्दर्य के बल से, अपना स्वागत कराने के लिए अभिमानिनी स्त्रियों को बाध्य करने वाली को बधाई की कोई आवश्यकता नही “

     चित्रलेखा उपन्यास में पात्र योजना जीवंत एवं आकर्षक है। 











                                         गोबिंद यादव

                                     बिरसा मुंडा कॉलेज

                                     मो. 6294524332

                   

     

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