वापसी कहानी उषा प्रियंवदा की प्रमुख कहानियों में से एक है जिसमे उन्होंने दो पीढियो के द्वंद को दिखाया गया है । पीढियो के द्वंद से उपजी त्रासदी एवं इसमे पुरानी पीढ़ी के हासिये पर जाने को कहानी का मूल कथ्य बनाया गया है। कहानी आधुनिकता के उस द्वंद को सामने रखती है जिसमे नई पीढ़ी अपने व्यक्तिगत जीवन मे किसी प्रकार का हस्तक्षेप बर्दास्त नही करती । कहानी का लक्ष्य विभिन्न समस्यायों एवं संवेदनाओ को व्यक्त करना है । कहानी कला के प्रमुख 6 तत्व माने गये है इन तत्वो की कसौटी पर वापसी कहानी का मूल्यांकन निम्न प्रकार से किया जा सकता है –
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कथावस्तु के बिना कहानी की कल्पना भी नही की जा सकती है यह उसका अनिवार्य अंग है । कथावस्तु में अनेक घटनाये हो सकती है या एक घटना भी हो सकती है वापसी कहानी में लेखिका ने गजाधर बाबू के माध्यम से पीढियो के द्वंद को कथावस्तु के केंद्र में रखा है । इस कहानी में गजाधर बाबू एक रेलवे कर्मचारी होते है जो अपनी नौकरी से रिटायर होकर अपने घर जा रहे थे । रेलवे क्वार्टर को खाली करना जितना कष्टदायी था उससे अधिक खुशी इस बात की थी कि वे अपने पत्नी और बच्चो के साथ रहने रहने जा रहे है । 35 साल की नौकरी में अधिकांश समय उन्होंने अकेला काटा था वे एक सफल ब्यक्ति थे उन्होंने शहर में एक मकान बनवाया था एक लड़के और एक लड़की की शादी कर दी थी दो बच्चे ऊंची कक्षाओं में पड़ रहे थे उनका एक भरा पूरा परिवार था किंतु उनके जीवन मे विक्षोभ अधिक था नॉकरी के दौरान उन्हें अपना परिवार बहुत याद आता रहा अब उनके चेहरे में खुशी की आभा दिखाई दे रही थी – अब कितने वर्षों बाद वह अवसर आया था जब वह फिर उसी स्नेह और आदर के मध्य रहने जा रहे थे ।
जब वे अपने परिवार के बीच रहने जाते है तो परिवार में सब अपने मर्जी के थे बेटे बहु अपने हिसाब से चल रहे थे। बड़ा बेटा अमर घर का मालिक था बसंती और नरेंद्र कॉलेज में पढ़ने वाले युवा थे परिवार बढ़ जाने से घर छोटा मालूम पड़ता था अपनी पत्नी और बच्चो से उन्हें कोई सहानुभूति नही मिलती । बच्चे किसी भी काम मे उनकी दखल अंदाजी पसंद नही करते । वे चाहते थे घर मे सभी अनुशाशन में रहे किन्तु अब देर हो गयी थी । उनका अनुशासन घर मे किसी को पसंद न था अमर तो अलग होने को भी सोचता है उनकी चारपाई बैठक में ही थी घर के मामले में उनके बढ़ते दखल से किचकिच बढ़ रही थी जिससे उनकी पत्नी कहती है –“ ठीक ही है आप बीच मे न पड़ा कीजिये । बच्चे बड़े हो गए है हमारा जो कर्तब्य था कर रहे है पड़ा रहे है शादी कर देंगे ।“ गजाधर बाबू का मन इससे बहुत आहत होता है उनके दखल से अमर भून भुना कर कहता है –“ बूढ़े आदमी हो चुपचाप पड़े रहो हर चीज़ में दखल क्यो देते हो”। परिवार के सभी सदस्यों का गजाधर बाबू से किसी न किसी प्रकार की शिकायत थी जिससे आहत होकर वे दूसरी नॉकरी करने को सोचते है और जाते समय पत्नी को भी ले जाना चाहते है लेकिन वह मना कर देती है उनके जाते ही घर मे सभी खुश हो जाते है उनकी पत्नी उनकी चारपाई भी घर से निकलवा देती है और यही कहानी का अंत हो जाता है ।
कहानी में कोई एक ब्यक्ति या एक से अधिक ब्यक्ति भी हो सकते है यह ब्यक्ति ही कहानी में पात्र या पात्र चरित्र कहलाता है । कहानी में इनकी संख्या कम होनी चाहिए तभी कहानीकार एक चरित्र के बाहरी और आंतरिक पक्षो का अधिक से अधिक मनोविश्लेषण कर सकता है साथ ही उसका मूल घटना से गहरा संबंध होना चाहिए वापसी कहानी में प्रमुख पात्र गजाधर बाबू है । साथ ही उनके पत्नी और बच्चे और रेलवे क्वार्टर में उनके साथ रहने वाला नॉकर गनेशी सहायक पात्र है । गजाधर बाबू रिटायर रेलवे कर्मचारी है जो अब बूढ़े हो चुके है जो पारिवारिक दृष्टि से सफल भी है – “ संसार की दृष्टि में उनका जीवन सफल कहा जा सकता था।“ उनका स्वभाव एकदम स्नेहशील था – “गजाधर बाबू स्वभाव से बहुत स्नेही ब्यक्ति थे और स्नेह के आकांक्षि भी।
वे अपने जीवन के तमाम जिम्मेदारियां को अच्छी तरह से निभाते है किंतु पीढियो के द्वंद से बिखर जाते है । कहानी के दूसरे प्रमुख पात्रो में अमर,नरेंद्र,बसंती उनकी पत्नी आदि आते है और इन पात्रो के माध्यम से लेखिका ने पीढियो के द्वंद का चित्रण किया है और इस द्वंद में पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी के आगे हार जाती है गजाधर बाबू अपना ही घर छोड़कर चले जाते है।
पहले संवाद कहानी का अभिन्न अंग माना जाता था लेकिन अब उसकी अनिवार्यता समाप्त हो गयी है। ऐसे अनेक कहानिया लिखी जा रही है जिसमे संवाद का एकदम आभाव रहता है इस दृष्टि से देखे तो वापसी कहानी में भी संवाद की कमी है । कही कही सिर्फ ब्यवहारिक संवाद ही देखने को मिलते है – बिट्टी चाय तो फीकी है लाइये और चीनी ढाल दु । बसंती बोली।
रहने दो तुम्हारी अम्मा जब आयंगी तभी पी लूंगा।
ऐसे ही छिक फुक संवाद पूरे कहानी में कही कही देखने को मिलती है।
कहानी देशकाल की उपज है इसलिए हर देश की कहानी दूसरे देश से अलग होती है इन कहानियों का अपना एक वातावरण होता है। जिसकी संस्कृति सभ्यता संस्कार का प्रभाव उनपर स्वाभाविक रूप से पड़ता है । वापसी कहानी में देशकाल की दृष्टि से भारतीय पृष्टभूमि की कहानी है । जिसमे आधुनिकता के आगमन से पीढ़ीगत अंतर को बड़ा दिया है जो इस कहानी में स्पस्ट रूप से देखी जा सकती है । गजाधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते है तो अमर , नरेंद्र, बसंती उनकी बहू नई पीढ़ी का एक ओर जहां पुरानी पीढ़ी में संस्कार और परिवार भाव है । वही नई पीढ़ी स्वार्थी ओर सिर्फ स्वयं के बारे में सोचने वाली है ।
भाषा कहानी को आकर्षक बनाती है और शैली कहानी को सुसज्जित करने वाला कलात्मक आवरण होती है। भाषा जितनी सहज होगी उतनी ही आकर्षक होगी । उसमे इतनी शक्ति होनी चाहिए । जो साधारण पाठको को भी अपनी ओर आकृष्ट कर ले । कहानीकार कहानी को अपने ढ़ंग से कहना चाहता है वह उसे वर्णात्मक , संवादात्मक , आत्मकथात्मक , विवरणात्मक किसी भी शैली में लिख सकता है । वापसी कहानी में उषा प्रियंवदा ने एकदम सहज भाषा का प्रयोग किया है कही से भी उसमे न तो लाक्षणिकता है और न ही मुहावरेदार एकदम सीधा-सपाट और सरल है । शब्दचयन की दृष्टि से ही कहानीकार बेहद सजग है , ढोलची , बाल्टी जैसे ग्रामीण शब्द का प्रयोग हुआ है तो क्वार्टर , रिटायर , स्टेशन जैसे अंग्रेजी शब्दो का भी किन्तु संख्या की दृष्टि से यह बेहद कम है । लेखिका ने ज्यादातर साफ खड़ी बोली का प्रयोग किया है । शैली की दृष्टि से यह कहानी वर्णात्मक और विवरणात्मक रूप में लिखी गयी है संवादात्मकता का आभाव है ।
उद्देश्य को भी कहानी का एक तत्व माना गया है बिना उद्देश्य के जीवन का कोई कार्य नही होता । कहानी की रचना भी बिना उद्देश्य के नही होती ।कहानियों में यह उद्देश्य उसके आवरण में छिपा रहता है यही उसका सौंदर्य है । वापसी कहानी का मूल उद्देश्य पीढ़ियों के द्वंद को रेखंकित करना है जिसमे पुरानी ओर नई पीढ़ी के बीच एक खड़ी खाई बनती जा रही है पुरानी पीढ़ी जहाँ अपने पुराने संस्कारो से चिपकी हुई है वही नई पीढ़ी पूरी तरह आधुनिक होती जा रही है इस नए और पुराने का द्वंद ही इस कहानी का मूल उद्देश्य है।
निष्कर्ष रूप मे कहा जा सकता है कि कहानी कला एक उत्कृष्ट कला है और इस दृष्टि से देखे तो उषा प्रियंवदा की यह कहानी कहानीकला के सभी विशेषताओ का सफल निर्वाहन करती है। इस कहानी में एक उत्कृष्ट कथानक है। पात्र कम किन्तु प्रभावशाली है देशकाल की दृष्टि से तेजी से आधुनिक हो रहे भारतीय पृष्ठ भूमि की कहानी है । संवादों की कमी है । जिसमे कहानी पर कोई प्रभाव नही पड़ता , भाषा शैली सहज और आकर्षक है जो पाठक को बांधे रखने में सक्षम है । कहानी आधुनिक होते भारत मे दो पीढ़ियों के बीच पनप रही खाई का चित्रण है । कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह कहानी – कहानी कला के तत्वो पर पूरी तरह से खड़ी उतरती है ।