मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

जीवन की आशा : 'ध्वनि' कविता

  'ध्वनि' कविता निराला द्वारा रचित आशा का संचार करने वाली कविता है । इसमें निराला की आशावादिता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस कविता में वे प्रकृति के उपादानो द्वारा अपने जीवन की तुलना करते हैं और यह आशा करते हैं कि यह उनके जीवन का प्रथम चरण है, जिसमें अभी केवल जीवन है, अभी अंत बहुत दूर है। जब तक इस जीवन का उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता तब तक अंत संभव नहीं है। यह कवि के आशावादी होने का प्रतीक है।जिसमे वह जीवन के वसंत को जब तक पूरी तरह नहीं जी लेता उसे आशा है कि तब तक उसका अंत संभव नहीं है।

      प्रस्तुत कविता में निराला अपने जीवन का अभी केवल प्रारंभ ही मानते हैं। जिस प्रकार प्रकृति में वसंत में नए हरे पत्ते निकलते हैं, कलिया खिलने लगती है, डाले कोमल होती है। उसी प्रकार कवि का जीवन भी वसंत के समान है, जिसमें नए उत्साह, नई उमंगे, स्वप्न , आशा , चेतना रूपी पत्ते निकलना प्रारंभ हुए हैं इसलिए उसे इन आशाओं, उमंगो के पूरा होने तक अंत दिखाई नहीं देता-

" अभी अभी तो आया है

मेरे वन में मृदुल वसंत 

अभी न होगा मेरा अंत।" 

     कवि अपने स्वप्नों और आशाओं द्वारा जीवन की आलसता को खींचकर उसे नई ऊर्जा से भर देना चाहता है। यह उर्जा उसे जगाने का कार्य करती है। वह अपने वसंत रूपी इस जीवन के प्रारंभिक समय में उर्जा का ऐसा संचार करना चाहता है जो प्रत्येक व्यक्ति. जो अभी तक नहीं चेतना से दूर है, उसे सींचकर उसमें भी आशा और ऊर्जा का संचार करना चाहता है-

" पुष्प- पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूंगा मैं,

अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं, " 

      कवि को यह आशा है कि यह उसके जीवन का प्रथम चरण है, जिसमें आगे संपूर्ण  यौवन पड़ा हुआ है। उसका मन बालक की भांति सभी दिशाओं में बहता रहता है। यह जो प्रथम चरण है इसके स्वर, राग विकसित नहीं हुए है । वह विकसित होंगे और पूरी दुनिया में  फैलेंगे; न सिर्फ फैलेंगे बल्कि चारों दिशाओं में आशा और नई चेतना का विस्तार करेंगे  और जब तक इसका विस्तार नहीं हो जाता  कवि को आशा है कि उसका अंत नहीं होगा-

" मेरे ही अविकसित राग से 

विकसित होगा बंधु , दिगंत

अभी न होगा मेरा अंत।"

     निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यह कविता कवि की आशा पर केंद्रित है। जिसमें उसे आशा है कि वह अपनी चेतना से चारों दिशाओं में उसका विस्तार करेगा। वह क्रांति की  भी चेतना हो सकती है, वह परिवर्तन की भी चेतना हो सकती है, वह बदलाव का राग भी हो सकता है. जो देश और समाज की आवश्यकता है। 









                                                                                                                    गोबिन्द कुमार यादव

                                                                                                                    बिरसा मुंडा कॉलेज

                                                                                                                                    6294524332          


                                              


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