सागर-कन्या और खग-शावक अज्ञेय द्वारा लिखित एक यात्रा वृतांत है जिसमे उन्होंने ने डेनमार्क की संस्कृति के माध्यम से भारतीय संस्कृति के मेल एवं वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को व्यक्त किया है। अपनी इस यात्रा वृतांत का प्रारम्भ वे भारतमाता के रूप वर्णन से करते है। साथ ही विविध देशों की देशमता का रूप भी सामने रखते है। जिसमे सभी कही न कही शक्ति और तेजश्विता का प्रतिक है। किन्तु डेनमार्क का प्रतिक इससे नितांत भिन्न है। उसका प्रतिक स्वप्न देखने वाली जलपरी है।
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इस रेखाचित्र में मुख्य रूप से सांस्कृतिक मिलान को रेखांकित किया गया है। जिसमे उन्होंने डेनमार्क की संस्कृति के माध्यम से भारतीय संस्कृति को भी रेखांकित करने का प्रयास किया है। जिस प्रकार- “डेनी चरित्र की कल्पनाशीलता उसका प्रधान नही तो उसका महत्वपूर्ण गुण अवश्य है।“ उसी प्रकार भारतीय लोग भी अत्यधिक कल्पनाशील होते है और इसका चित्रण अज्ञेय ने संकेतों मे ही कर के छोर दिया है- “ हम आदिकवि बाल्मीकि पर गर्व करते है, यूनान के लोग होमर पर.......डेनमार्क को गर्व है परियों की कहानियां लिखने वाले होन्स एंडरसन पर।“ जहा अन्य देशों ने महायुद्धों की गाथा लिखने वालों पर गर्व किया वही डेनमार्क के लोगों ने परियों की कथा लिखने वाले पर गर्व किया। और यही से पूरे विश्व को एक सन्देश जाता है- शांति और खुशहाली का यही शांति, खुशहाली से भरने का प्रयास अज्ञेय करते है। इसलिए संपूर्ण विश्व का छोटा-छोटा चित्रण कर के संपूर्ण विश्व को डेनमार्क की तरह खुशतबियत और मिलनसार होने का संदेश देते है।
डेनी जाती प्राचीन जनजातियों में से एक है और भारत प्राचीन सभ्यताओं का देश। भारत की अनेक ऐसी मान्यताएं है जो डेनमार्क से मिलती-जुलती है। जैसे- “इसके एक तलघर में पौराणिक डेनी महारथी हलगार डेन सोता है जो डेनमार्क के संकट के समय जागेगा और उसकी रक्षा करेगा।“ ऐसी पौराणिक कथाएं भारत में जाने कितनी भरी पड़ी है।
डेनमार्क समुद्र के किनारे बसा हुआ देश है। भारत भी तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है। अज्ञेय लिखते भी है-“ पूर्वी बंगाल में जो हॉउर पाए जाते है, हॉउर सागर का ही अपभ्रंश है वैसा ही जलप्रसार यहाँ भी है। अंतर इतना ही है कि इसकी स्वच्छ पारदर्शी नीलिमा हमें तल की चट्टानें देख लेने देती है।“ यह पारदर्शिता ही डेनमार्क की सबसे बड़ी विशेषता है। लेखक डेनमार्क, स्वीडन, नाॉर्वे इन सब का आपसी भाईचारे का वर्णन करते हुए यह स्पष्ट दिखा देना चाहते है कि विश्व को एक मैत्रीपूर्ण व्यवहार के साथ जीना चाहिए। देश का राजा अथवा प्रधान देश के आम-जन से पूर्ण रूप से जुड़ा हुआ होना चाहिए तथा जनता के सुख-दुखों में उसके साथ खड़ा होना चाहिए। जैसा डेनमार्क का इतिहास व्यक्त करते हुए अज्ञेय लिखते है- "राज परिवार के लोग इस पूर्णता के साथ अपने को जन-जीवन में मीला देते है कि अचरज होता है।"
इस यात्रा वृतांत में अज्ञेय ने डेनमार्क, स्वीडन, नाॉर्वे की जिस आत्मीयता और भाईचारे का चित्रण किया है वह कहीं न कहीं विश्व के तमाम देशों को आवश्यक है-“क्या उस आत्मीयता के वृत्त को इतना और विकसीत नही किया जा सकता कि भारत और स्केंडनेविया में परस्पर अनुकूलता बढ़ाई जा सके।“ यह आत्मीयता सांस्कृतिक धरातल पर ही संभव है। डेनमार्क के लोगो का खुशमिजाज और आत्मीयतापूर्ण व्यवहार कहीं न कहीं संपूर्ण विश्व को एकसूत्र मे बांधे रखने की क्षमता रखता है।
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निष्कर्ष रूप मे कहा जा सकता है कि सागर कन्या खग शावक यात्रा वृतांत मनुष्य के कल्पनाशील व्यक्तित्व उसकी सांस्कृतिक विराटता की ओर संकेत करता है। सागर की तरह शांत और पारदर्शी होना डेनमार्क के लोगो के व्यक्तित्व की विशेषता है और यह विशेषता भारतीय लोगो मे भी कही न कही पायी जाती है। वशुधैव कुटुम्बकम का भाव इसका प्रमाण है। इसी सांस्कृतिक धरातल पर आत्मीयता के प्रसार का प्रयास अज्ञेय ने किया है।
गोबिंद कुमार यदव, बिरसा मुंडा कॉलेज, 6294524332 |