काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित एक वैचारिक निबंध है। यह निबंध विचार प्रधान होते हुए भी भावुकता और बुद्धि का समन्वय है। चिंतामणि में आचार्य शुक्ल लिखते है ‘यात्रा के लिए निकली है बुद्धि पर ह्रदय को साथ लेकर।‘ अर्थात शुक्ल बुद्धि पक्ष और ह्रदय पक्ष दोनों का समन्वय अपने निबंधों में करते है। काव्य मे लोकमंगल की साधनावस्था उनका एक ऐसा ही निबंध है। काव्य में जिस लोक के मंगल का विधान होता है वह कही न कही बुद्धि और ह्रदय के समन्वय का ही परिणाम है।
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काव्य में लोकमंगल की स्थापना तभी संभव है जब वह साधनावस्था में हो क्योंकि सिद्धावस्था में भोगपक्ष प्रधान हो जाता है ऐसी अवस्था में उच्च कोटि का साहित्य नही लिखा जा सकता। साधनावस्था प्रयत्न का काव्य है, संघर्ष का काव्य है इसीलिए इसके आदर्श उच्च होते है। आचार्य शुक्ल साधनावस्था को विशेष महत्त्व देते हैं इसिलए रामायण, रामचरित मानस, पद्मावत, पृथ्वीराज रासो उन्हें विशेष प्रिय है क्योंकि इसे वे साधनावस्था का काव्य मानते हैं। इसे वे कर्म क्षेत्र का सौंदर्य मानते हैं और कहते हैं- “लोक में फैली दुःख की छाया को हटाने मे ब्रह्म की अनंदकला जो शक्तिमय रूप धारण करती है, उसकी भीषणता में भी अद्भुत मनोहरता, कटुता में भी अपूर्व मधुरता, प्रचंडता में भी गहरी आर्द्रता साथ लगी रहती है।“ इस निबंध में शुक्ल ने लोकधर्म की ओर भी संकेत किया है। और उनके अनुसार लोकधर्म विरुद्धों का सामंजस्य है। निबंध मे वे लिखते हैं- “भीषणता और सरसता, कोमलता और कठोरता, प्रचंडता और मृदुता का सामंजस्य ही लोकधर्म है।“ यह लोकधर्म का सौंदर्य है।
आदिकवि वाल्मीकि से लेकर अब तक के कवियों ने धर्म की स्थापना पर ही काव्य-कला का सौंदर्य मन है। धर्म के विषय मे आचार्य शुक्ल भी लिखते है- “वह व्यवस्था या वृत्ति जिससे लोक मे मंगल का विधान होता है । अभ्युदय की सिद्धि होती है, धर्म है।“ साधनावस्था का काव्य प्रयत्न और संघर्ष पर आश्रित है। इसिलए इसकी सफलता और विफलता दोनों में सौन्दर्य है। इसके लिए वे पाश्चात्य से लेकर भारतीय कवियों तक का उदाहरण देते है।
साधनावस्था को ग्रहण करने वाले कवियों को ही शुक्ल पूर्ण कवि मानते है। क्योंकि उनका मन उपभोग पक्ष अर्थात सिद्धावस्था की ओर नही जाता। ये कवि- “जिस प्रकाश को फैला हुआ देखकर मुग्ध होते है उसी प्रकार फैलने के पूर्व उसका अंधकार को हटाया जाना देखकर भी।“ कवि-कर्म के सौंदर्य पर विचार करते हुए आचार्य शुक्ल कहते है कि जो कवि प्रत्येक अवसर पर सत-पात्र को सफल और दुष्ट पात्र को असफल दिखाते है वे सच्चे कवि नही होते है। इस जगत में प्रायः धर्म की शक्ति उठ उठकर व्यर्थ होती है। कवि-कर्म के सौंदर्य के विधाय में शुक्ल लिखते है- “कवि कर्म के सौंदर्य के प्रभाव के द्वारा प्रवृति या निवृति अन्तः प्रकृति में उत्पन्न करता है, उसका उपदेश नही देता। "
मनुष्य सबसे अधिक कर्म सौन्दर्य के प्रति मुग्ध हित है और यह कर्म सौन्दर्य का विधान प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। कर्म सौन्दर्य कही न कही ह्रदय से सम्बंधित है और वह भावो द्वारा नियंत्रित होती है। और भाव भी दो प्रकार के होते है पक्ष और प्रतिपक्ष-“मनुष्य के शरीर मे जैसे वाम और दक्षिण दो पक्ष है वैसे ही उसके ह्रदय में भी कोमल और कठोर, मधुर और तीक्ष्ण दो पक्ष है, बराबर रहेंगे। काव्यकला की पूरी रमणीयता इन दोनों पक्षो के समन्वय के बीच मंगल या सौन्दर्य के विकास मे दिखाई पड़ती है।“
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निष्कर्ष रूप में हम कह सकते है कि काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था आचार्य रामचंद्र शुक्ल का एक विचारात्मक निबंध है।जिसमे उन्होंने काव्य के उद्देश्य पर विचार किया है। काव्य का मुख्य लक्ष्य लोकमंगल को मन गया है और यह लोकमंगल साधनावस्था में ही संभव है। अर्थात जब प्रयत्न और संघर्ष पक्ष चल रहे होते है तब उत्कृष्ट कोटि के काव्य का निर्माण होता है एवं उससे लोक में मंगल का विधान होता है। सिद्धावस्था का काव्य भोग पक्ष को लेकर चलता है इअलिये उसमें लोक उपेक्षित हो जाता है। काव्य और कवि कर्म सौन्दर्य पर भी इस निबंध में विचार किया गया है। कुल मिलाकर हम कह सकते है कि इस निबंध में काव्य सौन्दर्य, कविकर्म सौन्दर्य, काव्य रचना का मूल उद्देश्य आदि पर विचार किया गया है।
बहुत खुब।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंNice 👍
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा सरल शब्दों में आप ने स्पष्ट किया धन्यवाद
जवाब देंहटाएंस्वागत
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जवाब देंहटाएंआचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी- आधुनिक साहित्य नहीं मान्यताएं
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इन आलोचकों के पाठ की समीक्षा चाहिए थी जितनी हो सके उतनी
कृपया इन पर भी अपनी दृष्टिपात करती है चलो शब्दों में स्पष्ट करने का कष्ट करें
अद्भुत
जवाब देंहटाएंsir aapne bahut hi saral or sanshep roop bahut suder se apne vichaar ko prastut kiya kripya isi prakar lokmangal ke doosre paksh yaani sidhvasta ke baare main bhi shanshep main jaankari sajha kare
जवाब देंहटाएंBohot accha he
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