श्रव्य और श्रव्य-दृश्य माध्यमो की सामाजिक जीवन में
भूमिका :-
श्रव्य और श्रव्य-दृश्य माध्यमों की उपयोगिता अलग-अलग
स्थितियों तथा अलग-अलग सन्दर्भो में अलग-अलग है। किन्तु इसके बावजूद इन सभी
माध्यमों का उद्देश्य तथा लक्ष्य एक ही है। समाज की शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक
तथा राजनीतिक धरोहर को वृद्धिगत करने तथा व्यक्ति के 'जानने' एवं 'अभिव्यक्ति' के
मूलभूत अधिकार को अक्षुण्ण रखने की दिशा में श्रव्य और श्रव्य-दृश्य माध्यमों की उपयोगिता को मुख्यतः
पाँच प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) सूचना :-श्रव्य और श्रव्य-दृश्य माध्यमों के द्वारा विश्व की विभिन्न
घटनाओं, सामाजिक तथा राजनीतिक स्थितियों की सूचना जन-सामान्य को यथाशीघ्र उपलब्ध
हो जाती है । इसी के साथ, देश-विदेश की प्रगति तथा वैज्ञानिक आविष्कारों की गति की
सूचना भी जनता तक पहुँचाते है।
(2) अभिव्यक्ति :-
इन माध्यमों
द्वारा व्यक्ति अपने विचार तथा भावों को स्वतन्त्र रूप से अभिव्यक्त करता है।
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता सरकारी माध्यमों की अपेक्षा श्रव्य और श्रव्य-दृश्य माध्यमो में अधिक खुले रूप से
रहती है। इसीलिए इनकी महत्ता अन्यों की तुलना में बढ़ जाती है।
(3) विचार तथा घटनाओं का विश्लेषण- श्रव्य और श्रव्य-दृश्य माध्यम देश-विदेश की घटनाओं की
सूचना देने के साथ ही साथ उनके अर्थ का विश्लेषण भी करते हैं तथा सही मुद्दों तथा
विचारों के लिए जन-सामान्य का मत-परिवर्तन करने में अहम् भूमिका अदा करते हैं।
(4) प्रगति एवं विकास-श्रव्य और श्रव्य-दृश्य माध्यम जन-सामान्य की सामाजिक तथा
राजनीतिक प्रगति, आर्थिक विकास आदि के लिए सघन अभियान चलाते हैं तथा मिशन के रूप
में कार्य करते हैं ।
(5) मनोरंजन -रेडियो, दूरदर्शन तथा फिल्म आदि श्रव्य
और श्रव्य-दृश्य माध्यम जनता के लिए
रोचकता तथा मनोरंजन के प्रभावी साधन बनते हैं। इसके साथ, देश-विदेश की कला एवं
संस्कृति के समुचित विकास के लिए भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं।
गोबिंद कुमार यादव, बिरसा मुंडा कॉलेज, 6294524332 |
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