बुधवार, 4 मई 2022

अनुवाद के प्रकार : शब्दानुवाद, भावानुवाद, छायानुवाद, सारानुवाद



अनुवाद के प्रकार : शब्दानुवाद, भावानुवाद, छायानुवाद, सारानुवाद।

शब्दानुवाद

अनुवाद के क्षेत्र में शब्दानुवाद को उच्च कोटि की श्रेणी में नहीं कहा जाता किन्तु अनुवादक प्रक्रिया में ऐसे अनेक बिन्दु आते हैं जब शब्दानुवाद के सिवाय कोई पर्याय नहीं रह जाता। शब्दानुवाद वैसे भी भावानुवाद के लिए पूरक तत्त्व के रूप में काफी महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। शब्दानुवाद में स्रोत भाषा के शब्दों तथा शब्दांशों को ज्यों-का-त्यों लक्ष्य भाषा में परिवर्तित या रूपांतरित करके अनुवाद कर लिया जाता है अर्थात इसमें मूल पाठ या सामग्री की प्रत्येक शब्दाभिव्यक्ति का अनुवाद प्रायः उसी क्रम में किया जाता है। इसीलिए अनुवाद के इस प्रकार को निकृष्ट कहा जाता है क्योंकि प्रकृति भिन्न होने के साथ ही प्रत्येक भाषा का शब्द क्रम भी भिन्न-भिन्न होता है । अंग्रेजी का एक शब्द है-Pay जिसका शब्दानुवाद भुगतान अथवा वेतन होगा किन्तु बैंकिंग क्षेत्र में उसे 'भुगतान करें' इस पूरे वाक्य के अर्थ में किया जाता है। इस प्रकार, शब्दानुवाद से कभी-कभी उलझनें भी पैदा प्रयुक्त हो सकती हैं। शब्दानुवाद में मूल बातों के यथातथ्य होने के कारण अनुवाद की भाषा प्रायः कृत्रिम एवं निष्प्राण हो जाती है तथा उसमें मूल पाठ या रचना का स्वाभाविक प्रवाह नहीं रह जाता या नहीं आ पाता। फलतः अनुवाद दुर्बोध्य, बोझिल और कभी-कभार हास्यास्पद भी हो जाता है। शब्दानुवाद के रोचक उदाहरण इस प्रकार दिए जा सकते हैं-


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1. My head is eating circles.

मेरा सिर चक्कर खा रहा है।

2. He became water and water.

वह पानी-पानी हो गया।

3. Warm welcome.

गरमागरम स्वागत।

4. It was raining cats & dogs.

बिल्ली-कुत्तों की बरसात हो रही थी।

भावानुवाद

अनुवादक क्षेत्र में अन्य सभी अनुवादों की अपेक्षा भावानुवाद को उत्तम कोटि का अनुवाद माना जाता है। भावानुवाद में शब्दानुवाद की तरह केवल शब्द, वाक्यांश तथा वाक्य-प्रयोग आदि पर ध्यान न देकर स्रोत भाषा तथा लक्ष्य भाषा के मूल अर्थ, विचार और भावाभिव्यक्ति पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है। भावानुवाद में मूल पाठ की आत्मा अर्थात मूल कथ्य की सामग्री को ही मुख्य रूप मानकर उसे लक्ष्य भाषा में यथायोग्य पद्धति से सम्प्रेषित किया जाता है। अनुवाद के क्षेत्र में कभी-कभी ऐसी स्थितियाँ पैदा होती हैं जब अनुवादक किसी भी पाठ या वाक्यांश का ठीक-ठीक शब्दानुवाद करने में असमर्थ होता है। तब ऐसी स्थिति में उस सामग्री के अनुवाद के लिए भावानुवाद का ही सहारा लेना पड़ता है। डॉ. भोलानाथ तिवारी की मान्यता है-"सामान्यतः मूल सामग्री यदि सूक्ष्म भावों वाली है तो उसका भावानुवाद करते हैं। और यदि वह तथ्यात्मक वैज्ञानिक या विचार प्रधान है तो उसका शब्दानुवाद करते है।" भावानुवाद को अनुवाद प्रक्रिया की महत्त्वपूर्ण पद्धति माना जाता है, क्योंकि भावानुवाद मूल भाषा पाठ के प्रमुख विचार भाव, अर्थ तथा संकल्पना को लक्ष्य भाषा में उनकी समस्त विशेषताओं के साथ सम्प्रेषित किया जाता है। भावानुवाद में अनुवादक का ध्यान कथ्य के भाव, विचार तथा अर्थ पर विशेष रूप से बना रहता है। वस्तुतः इसमें अनुवादक मूल भाषा (स्रोत भाषा) पाठ की सामग्री के अर्थ को सम्पूर्णतः एवं समुचित ढंग से लक्ष्य भाषा पाठ में लाने की चेष्टा करता है, फलतः इसमें स्रोत भाषा की मूल भाव-भंगिमा तथा रचनाधर्मिता प्रायः सुरक्षित बनी रहती है। अतः इस दृष्टि से भावानुवाद सर्वाधिक उपयोगी माना जा सकता है।


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छायानुवाद

छायानुवाद के सन्दर्भ में 'छाया' शब्द से तात्पर्य है धूसर तथा धुँधला प्रभाव।

छायानुवाद में मूल पाठ की अर्थच्छाया को ग्रहण कर अनुवाद किया जाता है। अर्थात इसमें स्रोत भाषा की मुख्य बातें, दृष्टिकोण तथा विचार या संकल्पना आदि को ग्रहण करके इन सबके संकलित प्रभाव को लक्ष्य भाषा में रूपांतरित किया जाता है। छायानुवाद शब्दानुवाद की तरह स्रोत भाषा अथवा मूल पाठ के शब्दों का अनुसरण न करके, या भावानुवाद की तरह मूल विचारों के भावार्थ का यथातथ्य अनुगमन न करके, इन दोनों से मुक्त होकर इनकी छाया मात्र लेकर स्वतन्त्र रूप से अनुवाद किया जाता है।




सारानुवाद

लम्बी रचनाओं, लम्बे भाषणों, बृहद प्रतिवेदनों तथा राजनीतिक वार्ताओं आदि को उसके कथ्य तथा मूल तत्त्व को पूर्णतः सुरक्षित रखते हुए प्रसंग अथवा सन्दर्भ की आवश्यकतानुसार संक्षेप में रूपांतरित करने की प्रक्रिया को सारानुवाद कहते हैं। ऐसे अनुवाद में स्रोत भाषा की सामग्री का सारांश मूल कथ्य को सुरक्षित रखते हुए लक्ष्य भाषा में अंतरित कर दिया जाता है। अनुवाद की इस पद्धति का सहारा मुख्यतः दुभाषिये, समाचार पत्रों के संवाददाता तथा संसद अथवा विधान मण्डलों की कार्यवाही के रिकार्ड कर्ता आदि लेते हैं।



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गोबिंद यादव
बिरसा मुंडा कॉलेज
मो. 6294524332

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